ग़ज़ल Hindi Shayari

  • तप्त हृदय को:

    तप्त हृदय को, सरस स्नेह से,
    जो सहला दे, मित्र वही है;

    रूखे मन को, सराबोर कर,
    जो नहला दे, मित्र वही है;

    प्रिय वियोग, संतप्त चित्त को,
    जो बहला दे, मित्र वही है;

    अश्रु बूँद की, एक झलक से,
    जो दहला दे, मित्र वही है।
  • दर्द कागज़ पर:

    दर्द कागज़ पर, मेरा बिकता रहा,
    मैं बैचैन था, रातभर लिखता रहा;

    छू रहे थे सब, बुलंदियाँ आसमान की,
    मैं सितारों के बीच, चाँद की तरह छिपता रहा;

    अकड होती तो, कब का टूट गया होता,
    मैं था नाज़ुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा;

    बदले यहाँ लोगों ने, रंग अपने-अपने ढंग से,
    रंग मेरा भी निखरा पर, मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा;

    जिनको जल्दी थी, वो बढ़ चले मंज़िल की ओर,
    मैं समन्दर से राज, गहराई के सीखता रहा!
  • दरिया का सारा नशा:

    दरिया का सारा नशा उतरता चला गया,
    मुझको डुबोया और मैं उभरता चला गया;

    वो पैरवी तो झूठ की करता चला गया,
    लेकिन बस उसका चेहरा उतरता चला गया;

    हर साँस उम्र भर किसी मरहम से कम न थी,
    मैं जैसे कोई जख्म था भरता चला गया।
    ~ Wasim Barelvi
  • दुश्मन को भी सीने से:

    दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले,
    हम अपने बुजुर्गों का ज़माना नहीं भूले;

    तुम आँखों की बरसात बचाये हुये रखना,
    कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले;

    ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने,
    हम आप की तस्वीर बनाना नहीं भूले;

    इक ऊम्र हुई मैं तो हँसी भूल चुका हूँ,
    तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नहीं भूले।
  • ख़ुदा की मोहब्बत को:

    ख़ुदा की मोहब्बत को फ़ना कौन करेगा,
    सभी बन्दे नेक हों तो गुनाह कौन करेगा;

    ऐ ख़ुदा मेरे दोस्तों को सलामत रखना,
    वरना मेरी सलामती की दुआ कौन करेगा;

    और रखना मेरे दुश्मनों को भी महफूज़,
    वरना मेरी तेरे पास आने की दुआ कौन करेगा!
    ~ Mirza Ghalib
  • तेरा मुस्कुराना नहीं:

    तेरा मुस्कुराना नहीं भूलता है,
    वो नज़रें झुकाना नहीं भूलता है;

    मेरी ख़ाबगाह में मेरी जान का वो,
    दबे पाँव आना नहीं भूलता है;

    कि शर्मा के दांतों तले फिर तुम्हारा,
    वो ऊँगली दबाना नहीं भूलता है;

    वो गेसू सुखाना तेरा छत पे आ के,
    क़यामत गिराना नहीं भूलता है;

    लिपटना मेरे साथ आकर तुम्हारा,
    वो मंज़र सुहाना नहीं भूलता है;

    मुहब्बत निभाता दिलो-ओ-जाँ से 'सागर',
    पुराना ज़माना नहीं भूलता है!
    ~ Sagar Sood
  • मुझको एक बार:

    मुझको एक बार आजमाते तो सही,
    वो मेरी बज़्म में आते तो सही;

    मैंने रखा था सर-ए-शाम से घर को सजाकर,
    तुम न रुकते एक पल को आते तो सही;

    आपकी खातिर आपकी खुशियों की खातिर,
    खुद भी हो जाता नीलाम, बताते तो सही;

    यकीनन आपके हिस्से में रोशनी होती,
    शम्म-ए-वफ़ा दिल में एक बार जलाते तो सही;

    मैं भी इंसान हूँ पत्थर नहीं, क्यूँ ठुकराया,
    खुद हो जाता टुकड़े-टुकड़े बताते तो सही!
  • गम-ए-जिंदगी को:
    गम-ए-जिंदगी को इस कदर सँवार लेते हैं,
    जाम होंठो से जिगर तक उतार लेते हैं;

    तबाह होने की चाह में क्या-क्या करें हम,
    एक रोग नया तेरे इश्क का आज़ार लेते हैं;

    माना कि फांसलों से ही नजदीकीयाँ अपनी मगर,
    दिल कहे, सुनेंगे कभी, एक दफा पुकार लेते है;

    एक भी काम ना आया मशवरा तुझे भुलने का,
    मगर, तेरी याद के लम्हें वक्त से बेशुमार लेते हैं;

    ये मय ही तो हमदर्द , हमसफर मेरा अब साक़ी,
    दर्द मिटाने को दवा कहा इश्क के बीमार लेते हैं!
  • तेरी किताब के हर्फ़े:

    तेरी किताब के हर्फ़े समझ नहीं आते,
    ऐ ज़िन्दगी तेरे फ़लसफ़े समझ नहीं आते;

    कितने पन्नें हैं, किसको संभाल कर रखूँ,
    और कौन से फाड़ दूँ सफे, समझ नहीं आते;

    चौंकाया है ज़िन्दगी यूँ हर मोड़ पर तुमने,
    बाक़ी कितने हैं शगूफे समझ नहीं आते;

    हम तो ग़म में भी ठहाके लगाया करते थे;
    अब आलम ये है कि लतीफे समझ नहीं आते;

    तेरा शुकराना जो हर नेमत से नवाज़ा मुझको,
    पर जाने क्यों अब तेरे तोहफ़े समझ नहीं आते!
  • राहत-ए-जाँ से तो:

    राहत-ए-जाँ से तो ये दिल का बवाल अच्छा है,
    उसने पूछा तो है इतना तेरा हाल अच्छा है;

    माह अच्छा है बहुत ही न ये साल अच्छा है,
    फिर भी हर एक से कहता हूँ कि हाल अच्छा है;

    तेरे आने से कोई होश रहे या न रहे,
    अब तलक तो तेरे बीमार का हाल अच्छा है;

    आओ फिर दिल के समंदर की तरफ़ लौट चलें;
    वही पानी, वही मछली, वही जाल अच्छा है;

    कोई दीनार न दिरहम न रियाल अच्छा है,
    जो ज़रूरत में हो मौजूद वो माल अच्छा है;

    क्यों परखते हो सवालों से जवाबों को,
    होंठ अच्छे हों तो समझो कि सवाल अच्छा है!