ग़ज़ल Hindi Shayari

  • तेरे मिलने को...

    तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं;
    मगर ये लोग पागल हो गये हैं;

    बहारें लेके आये थे जहाँ तुम;
    वो घर सुनसान जंगल हो गये हैं;

    यहाँ तक बढ़ गये आलाम-ए-हस्ती;
    कि दिल के हौसले शल हो गये हैं;

    कहाँ तक ताब लाये नातवाँ दिल;
    कि सदमे अब मुसलसल हो गये हैं;

    निगाह-ए-यास को नींद आ रही है;
    मुसर्दा पुरअश्क बोझल हो गये हैं;

    उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना;
    यहाँ जो हादसे कल हो गये हैं;

    जिन्हें हम देख कर जीते थे 'नासिर';
    वो लोग आँखों से ओझल हो गये है।
    ~ Nasir Kazmi
  • तेरे इश्क़ की इन्तहा...

    तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ;
    मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ;

    सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी;
    कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ;

    ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को;
    कि मैं आप का सामना चाहता हूँ;

    कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल;
    चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ;

    भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी;
    बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ।
    ~ Allama Iqbal
  • ​वो तो ख़ुश्बू है...

    वो तो ख़ुश्बू है हवाओं में बिखर जायेगा;
    मसला फूल का है फूल किधर जायेगा;

    हम तो समझे थे के एक ज़ख़्म है भर जायेगा;
    क्या ख़बर थी के रग-ए-जाँ में उतर जायेगा;

    वो हवाओं की तरह ख़ानाबजाँ फिरता है;
    एक झोंका है जो आयेगा गुज़र जायेगा;

    वो जब आयेगा तो फिर उसकी रफ़ाक़त के लिये;
    मौसम-ए-गुल मेरे आँगन में ठहर जायेगा;

    आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी;
    तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जायेगा।
    ~ Parveen Shakir
  • तुने ये फूल जो...

    तुने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है;
    एक दिया है जो अँधेरों में जला रखा है;

    जीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वाला;
    ज़िन्दगी ने मुझे दाओ पे लगा रखा है;

    जाने कब आये कोई दिल में झाँकने वाला;
    इस लिये मैंने ग़िरेबाँ को खुला रखा है;

    इम्तेहाँ और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे;
    मैंने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है।
    ~ Qateel Shifai
  • तेरे ख़याल से...

    तेरे ख़याल से लौ दे उठी है तन्हाई;
    शब-ए-फ़िराक़ है या तेरी जलवाआराई;

    तू किस ख़याल में है ऐ मन्ज़िलों क्के शादाई;
    उन्हें भी देख जिन्हें रास्ते में नींद आई;

    पुकार ऐ जरस-ए-कारवान-ए-सुबह-ए-तरब;
    भटक रहे हैं अँधेरों में तेरे सौदाई;

    रह-ए-हयात में कुछ मरकले देख लिये;
    ये और बात तेरी आरज़ू न रास आई;

    ये सानिहा भी मुहब्बत में बारहा गुज़रा;
    कि उस ने हाल भी पूछा तो आँख भर आई;

    फिर उस की याद में दिल बेक़रार है 'नासिर';
    बिछड़ के जिस से हुई शहर शहर रुसवाई।
    ~ Nasir Kazmi
  • तेरे इश्क़ की इंतिहा...

    तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ;
    मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ;

    सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी;
    कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ;

    ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को;
    कि मैं आप का सामना चाहता हूँ;

    कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल;
    चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ;

    भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी;
    बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ।
    ~ Allama Iqbal
  • तुम्हारी मस्त नज़र...

    तुम्हारी मस्त नज़र अगर इधर नहीं होती;
    नशे में चूर फ़िज़ा इस कदर नहीं होती;

    तुम्हीं को देखने की दिल में आरजूए हैं;
    तुम्हारे आगे ही और ऊंची नज़र नही होती;

    ख़फ़ा न होना अगर बढ़ के थाम लूं दामन;
    ये दिल फ़रेब ख़ता जान कर नहीं होती;

    तुम्हारे आने तलक हम को होश रहता है;
    फिर उसके बाद हमें कुछ ख़बर नहीं होती।
    ~ Sahir Ludhianvi
  • किया है प्यार जिसे...

    किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह;
    वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह;

    बड़ा के प्यास मेरी उस ने हाथ छोड़ दिया;
    वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह;

    किसे ख़बर थी बड़ेगी कुछ और तारीकी;
    छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह;

    कभी न सोचा था हमने "क़तील"उस के लिये;
    करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह।
    ~ Qateel Shifai
  • ज़बाँ सुख़न को सुख़न...

    ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा;
    सुख़नकदा मेरी तर्ज़-ए-सुख़न को तरसेगा;

    नये प्याले सही तेरे दौर में साक़ी;
    ये दौर मेरी शराब-ए-कोहन को तरसेगा;

    मुझे तो ख़ैर वतन छोड़ के अमन न मिली;
    वतन भी मुझ से ग़रीब-उल-वतन को तरसेगा;

    उन्हीं के दम से फ़रोज़ाँ हैं मिल्लतों के चराग़;
    ज़माना सोहबत-ए-अरबाब-ए-फ़न को तरसेगा;

    बदल सको तो बदल दो ये बाग़बाँ वरना;
    ये बाग़ साया-ए-सर्द-ओ-समाँ को तरसेगा;

    हवा-ए-ज़ुल्म यही है तो देखना एक दिन;
    ज़मीं पानी को सूरज किरन को तरसेगा।
    ~ Nasir Kazmi
  • मुमकिन है कि तु...

    मुमकिन है कि तु जिसको समझता है बहाराँ;
    औरों की निगाहों में वो मौसम हो ख़िज़ाँ का;

    है सिल-सिला एहवाल का हर लहजा दगरगूँ;
    अए सालेक-रह फ़िक्र न कर सूदो-ज़याँ का;

    शायद के ज़मीँ है वो किसी और जहाँ की;
    तु जिसको समझता है फ़लक अपने जहाँ का।
    ~ Allama Iqbal