रुकता नहीं तमाशा, रहता है खेल जारी; उस पर कमाल ये है, कि दिखता नहीं मदारी। |
गुज़रता जा रहा है वक़्त आपाधापी में यूँ ही; कभी मेरे भी हिस्से एक सुहानी शाम आ जाये। |
दरवाज़े बड़े करवा लिए हैं हमने भी अपने आशियाने के, क्योंकि कुछ दोस्तों का कद बड़ा हो गया है चार पैसे कमाकर। |
फुर्सत मिले जब भी तो रंजिशे भुला देना; कौन जाने साँसों की मोहलतें कहाँ तक हैं। |
गिले-शिकवे ज़रूरी हैं अगर सच्ची मोहब्बत है; जहाँ पानी बहुत गहरा हो थोड़ी काई रहती है। |
मुदद्तें हो गयी हैं चुप रहते रहते, कोई सुनता तो हम भी कुछ कहते। |
वफ़ा की उम्मीद मत रखो इस दुनिया में, जब दुआ कबूल नहीं होती तो लोग भगवान बदल लेते हैं। |
आग थे इब्तिदा-इश्क़ में हम; हो गए ख़ाक इन्तहा है यह। |
दूरियाँ जब बढ़ी तो गलतफहमियां भी बढ़ गयी; फिर तुमने वो भी सुना जो मैंने कहा ही नही। |
कोहराम मचा रखा है जून की गर्म हवाओं ने, और एक तेरे दिल का मौसम है जो बदलने का नाम ही नही लेता। |