कुछ अपना अंदाज हैं कुछ मौसम रंगीन हैं, तारीफ करूँ या चुप रहूँ, जुर्म दोनो ही संगीन हैं! |
कुछ तो चाहत होगी इन बारिश की बूंदों की; वरना कौन गिरता है इस ज़मीन पे आसमान तक पहुँचने के बाद! |
इन बादलो का मिजाज मेरे मेहबूब से बहुत मिलता है; कभी टूट के बरसते है, कभी बेरुखी से गुजर जाते है! |
बरसात का मौसम तो गुज़र गया; आँखों में नमी मगर अब भी है! |
जो ख़ुलूस से मिलता है बरस जाता हूँ; मैं बरसात का इक बादल आवारा सा हूँ! |
अच्छा-सा कोई मौसम तन्हा-सा कोई आलम; हर वक़्त का रोना तो बेकार का रोना है। |
सहम उठते हैं कच्चे मकान, पानी के खौफ़ से; महलों की आरज़ू ये है कि, बरसात तेज हो! |
तेरे बगैर इस मौसम में वो मजा कहाँ; काँटों की तरह चुभती है, दिल में बारिश की बूंदे। |
ये गुलाबी ठंड, ये हसीन रात और उस पर तौबा तुम्हारी इतनी याद, सुनो, कभी तो तुम भी यूँ ही हमसे मिलने चले आओ। |
मौसम बहुत सर्द है, चल ऐ दिल कुछ ख्वाहिशों को आग लगाते हैं। |