दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थी; इंतेहा ये है कि 'फ़ानी' दर्द अब दिल हो गया! |
ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर; आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है! |
जवानी को बचा सकते तो हैं हर दाग़ से वाइज़; मगर ऐसी जवानी को जवानी कौन कहता है! |
ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का; बात पहुँची तेरी जवानी तक! |
तिनकों से खेलते ही रहे आशियाँ में हम; आया भी और गया भी ज़माना बहार का! |
राज़-ए-हक़ीकत जानने वाले देखिये अब क्या कहते हैं; दिल को अपना दिल नहीं कहते, उनकी तमन्ना कहते हैं। |