Hasrat Mohani Hindi Shayari

  • उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ;</br>
कश्ती मेरी डुबोई है साहिल के आस-पास!</br>
*साहिल: किनाराUpload to Facebook
    उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ;
    कश्ती मेरी डुबोई है साहिल के आस-पास!
    *साहिल: किनारा
    ~ Hasrat Mohani
  • जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था,</br>
सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है;</br>
ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़,</br>
वो तेरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है!Upload to Facebook
    जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था,
    सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है;
    ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़,
    वो तेरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है!
    ~ Hasrat Mohani
  • बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी;</br>
बादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी!Upload to Facebook
    बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी;
    बादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी!
    ~ Hasrat Mohani
  • नहीं आती तो याद उनकी महीनों तक नहीं आती;<br/>
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं!Upload to Facebook
    नहीं आती तो याद उनकी महीनों तक नहीं आती;
    मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं!
    ~ Hasrat Mohani
  • चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है; <br/>
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है! Upload to Facebook
    चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है;
    हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है!
    ~ Hasrat Mohani
  • इक बार दिखाकर चले जाओ झलक अपनी,<br/>
हम जल्वा-ए-पैहम के तलबगार कहाँ हैं।<br/><br/>

1. जल्वा-ए-पैहम - लगातार दर्शन<br/>
2. तलबगार - ख्वाहिशमंद, मुश्ताक, अभिलाषी
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    इक बार दिखाकर चले जाओ झलक अपनी,
    हम जल्वा-ए-पैहम के तलबगार कहाँ हैं।

    1. जल्वा-ए-पैहम - लगातार दर्शन
    2. तलबगार - ख्वाहिशमंद, मुश्ताक, अभिलाषी
    ~ Hasrat Mohani
  • इक जहाँ है जिसका मुश्ताक-ए-जमाल;<br/>
सख्त हैरत है, वह क्यों रूपोश है!Upload to Facebook
    इक जहाँ है जिसका मुश्ताक-ए-जमाल;
    सख्त हैरत है, वह क्यों रूपोश है!
    ~ Hasrat Mohani
  • अब वो मिलते भी हैं तो यूँ कि कभी;<br/>
गोया हमसे कुछ वास्ता न था!
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    अब वो मिलते भी हैं तो यूँ कि कभी;
    गोया हमसे कुछ वास्ता न था!
    ~ Hasrat Mohani