Jaan Nisar Akhtar Hindi Shayari

  • ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें;<br/>
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं!<br/>
*इल्म: ज्ञान<br/>
*रिसाले: पत्रिकाओंUpload to Facebook
    ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें;
    इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं!
    *इल्म: ज्ञान
    *रिसाले: पत्रिकाओं
    ~ Jaan Nisar Akhtar
  • सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी;</br>
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी!Upload to Facebook
    सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी;
    तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी!
    ~ Jaan Nisar Akhtar
  • आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो;<br/>
नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है!Upload to Facebook
    आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो;
    नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है!
    ~ Jaan Nisar Akhtar
  • लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से;<br/>
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से!Upload to Facebook
    लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से;
    तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से!
    ~ Jaan Nisar Akhtar
  • लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से;<br/>
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से!Upload to Facebook
    लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से;
    तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से!
    ~ Jaan Nisar Akhtar
  • तुझे बाँहों में भर लेने की ख़्वाहिश यूँ उभरती है;<br/>
कि मैं अपनी नज़र में आप रुस्वा हो सा जाता हूँ।<br/><br/>

रुस्वा  =  बदनामUpload to Facebook
    तुझे बाँहों में भर लेने की ख़्वाहिश यूँ उभरती है;
    कि मैं अपनी नज़र में आप रुस्वा हो सा जाता हूँ।

    रुस्वा = बदनाम
    ~ Jaan Nisar Akhtar
  • हर-चंद ऐतबार में धोखे भी हैं मगर;<br/>
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए!Upload to Facebook
    हर-चंद ऐतबार में धोखे भी हैं मगर;
    ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए!
    ~ Jaan Nisar Akhtar
  • अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें;<br/>
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं।Upload to Facebook
    अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें;
    कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं।
    ~ Jaan Nisar Akhtar
  • आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से,<br/>
चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम।Upload to Facebook
    आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से,
    चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम।
    ~ Jaan Nisar Akhtar