ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें; इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं! *इल्म: ज्ञान *रिसाले: पत्रिकाओं |
सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी; तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी! |
आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो; नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है! |
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से; तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से! |
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से; तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से! |
तुझे बाँहों में भर लेने की ख़्वाहिश यूँ उभरती है; कि मैं अपनी नज़र में आप रुस्वा हो सा जाता हूँ। रुस्वा = बदनाम |
हर-चंद ऐतबार में धोखे भी हैं मगर; ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए! |
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें; कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं। |
अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं,, कुछ शेर फ़क़त उन को सुनाने के लिए हैं। |
आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से, चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम। |