मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए; कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से! *इबारत: प्रतीक |
अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअत को पा सके; मेरा ही दिल है वो कि जहाँ तू समा सके! अर्ज़-ओ-समा = धरती और आकाश वुसअत = विशालता, सम्पूर्णता |
न कोई इलज़ाम न कोई तंज़, न कोई रुसवाई मीर; दिन बहुत हो गए यारों ने कोई इनायत नहीं की! |