मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए; कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से! *इबारत: प्रतीक |
अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअत को पा सके; मेरा ही दिल है वो कि जहाँ तू समा सके! अर्ज़-ओ-समा = धरती और आकाश वुसअत = विशालता, सम्पूर्णता |
जग में आकर इधर उधर देखा... जग में आकर इधर उधर देखा; तू ही आया नज़र जिधर देखा; जान से हो गए बदन ख़ाली; जिस तरफ़ तूने आँख भर देखा; नाला, फ़रियाद, आह और ज़ारी; आप से हो सका सो कर देखा; उन लबों ने की न मसीहाई; हम ने सौ-सौ तरह से मर देखा; ज़ोर आशिक़ मिज़ाज है कोई; 'दर्द' को क़िस्स:-ए- मुख्तसर देखा। |
हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें; दिल ही नहीं रहा है कि कुछ आरज़ू करें। |
'दर्द' के मिलने से ऐ यार बुरा क्यों माना; उस को कुछ और सिवा दीद के मंज़ूर न था। |
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा; तो एक दिन मेरा जी जाता रहेगा; मैं जाता हूँ दिल को पास तेरे छोड़े; मेरी याद तुझको दिलाता रहेगा। |
मुझे शिकवा नहीं कुछ बेवफ़ाई का तेरी हरगिज़; गिला तब हो अगर तू ने किसी से भी निभाई हो। |
तुम आज हँसते हो हंस लो मुझ पर ये आज़माइश ना बार-बार होगी; मैं जानता हूं मुझे ख़बर है कि कल फ़ज़ा ख़ुशगवार होगी; रहे मुहब्बत में ज़िन्दगी भर रहेगी ये कशमकश बराबर; ना तुमको क़ुरबत में जीत होगी ना मुझको फुर्कत में हार होगी। |
मुझे शिकवा नहीं कुछ बेवफ़ाई का तेरी हरगिज़; गिला तब हो अगर तूने किसी से भी निभाई हो। |
मेरा जी है जब तक... मेरा जी है जब तक तेरी जुस्तजू है; ज़बाँ जब तलक है यही गुफ़्तगू है; ख़ुदा जाने क्या होगा अंजाम इसका; मै बेसब्र इतना हूँ वो तुन्द ख़ू है; तमन्ना है तेरी अगर है तमन्ना; तेरी आरज़ू है अगर आरज़ू है; किया सैर सब हमने गुलज़ार-ए-दुनिया; गुल-ए-दोस्ती में अजब रंग-ओ-बू है; ग़नीमत है ये दीद वा दीद-ए-याराँ; जहाँ मूँद गयी आँख, मैं है न तू है; नज़र मेरे दिल की पड़ी 'दर्द' किस पर; जिधर देखता हूँ वही रू-ब-रू है। |