ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो; मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी! |
आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह; उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी! |
दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे; दिन कहीं रात कहीं सुब्ह कहीं शाम कहीं! |
कितने खड़े हैं पैरें अपना दिखा के सीना; सीना चमक रहा है हीरे का ज्यूँ नगीना; आधे बदन पे है पानी आधे पे है पसीना; सर्वों का बह गोया कि इक करीना। |
आगे तो परीजाद ये रखते थे हमें घेर; आते थे चले आप जो लगती थी ज़रा देर; सो आके बुढ़ापे ने किया हाय ये अंधेरे; जो दौड़ के मिलते थे वो अब हैं मुंह फेर। |