Nazeer Akbarabadi Hindi Shayari

  • ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो;</br>
मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी!Upload to Facebook
    ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो;
    मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी!
    ~ Nazeer Akbarabadi
  • आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह;</br>
उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी!Upload to Facebook
    आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह;
    उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी!
    ~ Nazeer Akbarabadi
  • दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे;<br/>
दिन कहीं रात कहीं सुब्ह कहीं शाम कहीं!Upload to Facebook
    दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे;
    दिन कहीं रात कहीं सुब्ह कहीं शाम कहीं!
    ~ Nazeer Akbarabadi
  • इश्क़ फिर वो रंग लाया है कि जी जाने है;
    दिल का ये रंग बनाया है कि जी जाने है;
    नाज़ उठाने में जफ़ाएं तो उठाई लेकिन;
    लुत्फ़ भी ऐसा उठाया है कि जी जाने है।
    ~ Nazeer Akbarabadi
  • दूर से आये थे...

    दूर से आये थे साक़ी सुनके मयख़ाने को हम;
    बस तरसते ही चले अफ़सोस पैमाने को हम;

    मय भी है, मीना भी है, साग़र भी है साक़ी नहीं;
    दिल में आता है लगा दें आग मयख़ाने को हम;

    हमको फँसना था क़फ़ज़ में, क्या गिला सय्याद का;
    बस तरसते ही रहे हैं, आब और दाने को हम;

    बाग में लगता नहीं सहरा में घबराता है दिल;
    अब कहाँ ले जा कर बिठाऐं ऐसे दीवाने को हम;

    ताक-ए-आबरू में सनम के क्या ख़ुदाई रह गई;
    अब तो पूजेंगे उसी क़ाफ़िर के बुतख़ाने को हम;

    क्या हुई तक़्सीर हम से, तू बता दे ए 'नज़ीर';
    ताकि शादी मर्ग समझें, ऐसे मर जाने को हम।
    ~ Nazeer Akbarabadi
  • कितने खड़े हैं पैरें अपना दिखा के सीना;<br />
सीना चमक रहा है हीरे का ज्यूँ नगीना;<br />
आधे बदन पे है पानी आधे पे है पसीना;<br />
सर्वों का बह गोया कि इक करीना।Upload to Facebook
    कितने खड़े हैं पैरें अपना दिखा के सीना;
    सीना चमक रहा है हीरे का ज्यूँ नगीना;
    आधे बदन पे है पानी आधे पे है पसीना;
    सर्वों का बह गोया कि इक करीना।
    ~ Nazeer Akbarabadi
  • आगे तो परीजाद ये रखते थे हमें घेर;<br />
आते थे चले आप जो लगती थी ज़रा देर;<br />
सो आके बुढ़ापे ने किया हाय ये अंधेरे;<br />
जो दौड़ के मिलते थे वो अब हैं मुंह फेर।Upload to Facebook
    आगे तो परीजाद ये रखते थे हमें घेर;
    आते थे चले आप जो लगती थी ज़रा देर;
    सो आके बुढ़ापे ने किया हाय ये अंधेरे;
    जो दौड़ के मिलते थे वो अब हैं मुंह फेर।
    ~ Nazeer Akbarabadi