कह के आ गए उनसे कि जी लेंगे तुम्हारी बिन, उनके जुदा होते ही जान पे बन आई है। |
दूरियों की ना परवाह कीजिये, दिल जब भी पुकारे बुला लीजिये, कहीं दूर नहीं हैं हम आपसे, बस अपनी पलकों को आँखों से मिला लीजिये। |
शायद वो अपना वजूद छोड़ गया है मेरी हस्ती में, यूँ सोते-सोते जाग जाना मेरी आदत पहले कभी न थी। |
सजा न दे मुझे बेक़सूर हूँ मैं, थाम ले मुझको ग़मों से चूर हूँ मैं, तेरी दूरी ने कर दिया है पागल मुझे, और लोग कहते हैं कि मगरूर हूँ मैं। |
कहो तो इश्क़ अपना आज कागज़ पे निकाल दूँ; के तुम आ जाओ करीब तुमको लफ़्ज़ों में ढाल दूँ! |
नहीं जो दिल में जगह तो नजर में रहने दो, मेरी हयात को तुम अपने असर में रहने दो, मैं अपनी सोच को तेरी गली में छोड़ आया हूँ, मेरे वजूद को ख़्वाबों के घर में रहने दो। |
इक बार दिखाकर चले जाओ झलक अपनी; हम जल्वा-ए-पैहम के तलबगार कहाँ है। जल्वा-ए-पैहम - लगातार दर्शन तलबगार - ख्वाहिशमंद, मुश्ताक, अभिलाषी |
इश्क जाने ये कैसा मौसम ले आया है; के ग़म की बरसात में दोनों भीग रहे! |
इन आँखों में सूरत तेरी सुहानी है; मोम सी पिघल रही मेरी जवानी है; जिस शिद्दत से सितम हुए थे हम पर; मर जाना चाहिए था, जिंदा हैं, हैरानी है! |
मोहब्बत के आँसू को यूँ बहाया नहीं जाता; इस मोती को पागल यूँ गंवाया नहीं जाता; लिए हैं बोसे मैंने लब-ए-जाना के जब से; ऐसे - वैसों से मुंह अब लगाया नहीं जाता! |