शिकायत क्या करूँ दोनों तरफ ग़म का फसाना है, मेरे आगे मोहब्बत है तेरे आगे ज़माना है, पुकारा है तुझे मंजिल ने लेकिन मैं कहाँ जाऊं, बिछड़ कर तेरी दुनिया से कहाँ मेरा ठिकाना है। |
ऐ दिल मत कर इतनी मोहब्बत तू किसी से, इश्क़ में मिला दर्द तू सह नहीं पायेगा, टूट कर बिखर जायेगा एक दिन अपनों के हाथों, किसने तोड़ा ये भी किसी से कह नहीं पायेगा। |
तुम्हें क्या बताये इश्क़ में मिलता है दर्द क्या; मरहम भी पिघल जाते हैं ज़ख्म की गहराई देखकर। |
तेरे हुस्न की तपिश, कहीं जला ना दे मुझे; तू कर मोहब्बत मुझसे, ज़रा आहिस्ता आहिस्ता! |
छुपकर मेरी नज़र से गुज़र जाईये मगर; बचकर मेरे ख्याल से किधर जाईयेगा! |
ज़रूरी तो नहीं के शायरी वो ही करे जो इश्क में हो; ज़िन्दगी भी कुछ ज़ख्म बेमिसाल दिया करती है | |
कह के आ गए उनसे कि जी लेंगे तुम्हारी बिन, उनके जुदा होते ही जान पे बन आई है। |
दूरियों की ना परवाह कीजिये, दिल जब भी पुकारे बुला लीजिये, कहीं दूर नहीं हैं हम आपसे, बस अपनी पलकों को आँखों से मिला लीजिये। |
शायद वो अपना वजूद छोड़ गया है मेरी हस्ती में, यूँ सोते-सोते जाग जाना मेरी आदत पहले कभी न थी। |
सजा न दे मुझे बेक़सूर हूँ मैं, थाम ले मुझको ग़मों से चूर हूँ मैं, तेरी दूरी ने कर दिया है पागल मुझे, और लोग कहते हैं कि मगरूर हूँ मैं। |