तुम्हें शिकायत है कि मुझे बदल दिया है वक़्त ने; कभी खुद से भी तो सवाल कर कि क्या तू वही है। |
कहीं छत थी, दीवार-ओ-दर थे कहीं, मिला मुझे घर का पता देर से; दिया तो बहुत ज़िन्दगी ने मुझे, मगर जो दिया, वो दिया देर से। |
तू न कर ज़िक्र-ए-मोहब्बत कोई गम नहीं; तेरी ख़ामोशी भी सच बयाँ कर देती है। |
मुस्कुरा कर उन का मिलना और बिछड़ना रूठ कर; बस यही दो लफ़्ज़ एक दिन दास्ताँ हो जायेंगे। |
तुम्हारी खुशियों के ठिकाने बहुत होंगे मगर, हमारी बेचैनियों की वजह बस तुम हो। |
वो लफ्ज कहाँ से लाऊं जो तेरे दिल को मोम कर दें, मेरा वजूद पिघल रहा है तेरी बेरूखी से। |
ना कर दिल अजारी, ना रुसवा कर मुझे; जुर्म बता, सज़ा सुना और किस्सा खत्म कर। |
ज़िन्दगी यूँ ही बहुत कम है, मोहब्बत के लिए; फिर एक दूसरे से रूठकर वक़्त गँवाने की जरूरत क्या है। |
मेरी आँखों में आँसू नहीं बस कुछ नमी है, वजह तू नहीं बस तेरी ये कमी है। |
दिल की ना सुन ये फ़कीर कर देगा, वो जो उदास बैठे हैं, नवाब थे कभी। |