ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैंने; बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला! |
चल हो गया फैंसला कुछ कहना ही नहीं; तू जी ले मेरे बगैर मुझे जीना ही नहीं! |
काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर; फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ! |
कभी टूट कर बिखरो तो मेरे पास आ जाना, मुझे अपने जैसे लोग बहुत पसंद हैं! |
अब क्या बताये किसी को कि ये क्या सजा है; इस बेनाम ख़ामोशी की क्या वजह है! |
दुःख तो अपने ही देते हैं, वरना गैरों को कैसे पता कि हमें तकलीफ किस बात से होती है! |
छोड़ो ना यार, क्या रखा है सुनने और सुनाने में; किसी ने कसर नहीं छोड़ी दिल दुखाने में! |
रोज़ पिलाता हूँ एक ज़हर का प्याला उसे; एक दर्द जो दिल में है मरता ही नहीं है! |
तू साथ होकर भी साथ नहीं होती; अब तो राहत में भी राहत नहीं होती! |
ज़िन्दगी ने मेरे दर्द का क्या खूब इलाज सुझाया; वक़्त को दवा बताया, ख्वाहिशों से परहेज़ बताया! |