हर पल कुछ सोचते रहने की आदत गयी है; हर आहट पे च चौंक जाने की आदत हो गयी है; तेरे इश्क़ में ऐ बेवफा, हिज्र की रातों के संग; हमको भी जागते रहने की आदत हो गयी है। |
तेरे इश्क़ ने दिया सुकून इतना; कि तेरे बाद कोई अच्छा न लगे; तुझे करनी है बेवफाई तो इस अदा से कर; कि तेरे बाद कोई बेवफ़ा न लगे। |
कभी ग़म तो कभी तन्हाई मार गयी; कभी याद आ कर उनकी जुदाई मार गयी; बहुत टूट कर चाहा जिसको हमने; आखिर में उनकी ही बेवफाई मार गयी। |
शायद हम ही बेवफा थे कि झटके से उनके दिल से निकल गए; उनकी वफा तो देखिये कि अब तक दिल में घर किए बैठे हैं। |
जो ज़ख्म दे गए हो आप मुझे; ना जाने क्यों वो ज़ख्म भरता नहीं; चाहते तो हम भी हैं कि आपसे अब न मिलें; मगर ये जो दिल है कमबख्त कुछ समझता ही नहीं। |
महफ़िल में कुछ तो सुनाना पड़ता है; ग़म छुपा कर मुस्कुराना पड़ता है; कभी हम भी उनके अज़ीज़ थे; आज-कल ये भी उन्हें याद दिलाना पड़ता है। |
ज़िंदगी से बस यही एक गिला है; ख़ुशी के बाद न जाने क्यों गम मिला है; हमने तो की थी वफ़ा उनसे जी भर के; पर नहीं जानते थे कि वफ़ा के बदले बेवफाई ही सिला है। |
कभी करीब तो कभी जुदा था तू; जाने किस-किस से ख़फ़ा है तू; मुझे तो तुझ पर खुद से ज्यादा यकीन था; पर ज़माना सच ही कहता था कि बेवफ़ा है तू। |
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने; बात तो सच है ये मगर बात है रुस्वाई की। |
मोहब्बत का नतीजा दुनिया में हमने बुरा देखा; जिन्हें दावा था वफ़ा का उन्हें भी हमने बेवफा देखा। |