अब खुद से मिलने को मन करता है; लोगो से सुना है कि बहुत बुरे है हम! |
शर्म ओ हया का अख़्तियार इतना रहा हम पर; जिसको चाहा उमर भर, उसी को जता ना सके! |
ज़ायां ना कर अपने अल्फाज किसी के लिए; खामोश रह कर देख तुझे समझता कौन है! |
लम्हे लम्हे मैं बसी है तुम्हारी यादों की महक; यह बात और है मेरी नज़रों से दूर हो तुम! |
झट से बदल दूं, इतनी न हैसियत न आदत है मेरी; रिश्ते हों या लिबास, मैं बरसों चलाता हूँ! |
सब फूल लेकर गए मैं कांटे ही उठा लाया; पड़े रहते तो किसी अपने के पाँव मे जख्म दे| |
हम भी मजबूरियों का उज़्र करें; फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ! |
मुझ से लाग़र तेरी आँखों में खटकते तो रहे; तुझ से नाज़ुक मेरी नज़रों में समाते भी नहीं! |
हथेली पर रखकर नसीब, तु क्यो अपना मुकद्दर ढूँढ़ता है; सीख उस समन्दर से, जो टकराने के लिए पत्थर ढूँढ़ता है! |
शाम-ए-ग़म कुछ उस निग़ाह-ए-नाज़ की बातें करो; बेखुदी बढ़ती चली है, राज़ की बातें करो! शाम-ए-ग़म: दर्द भरी शाम निग़ाह-ए-नाज़: प्रेमिका की नज़र बेखुदी: बेहोशी |