इज़हार Hindi Shayari

  • अब खुद से मिलने को मन करता है;<br/>

लोगो से सुना है कि बहुत बुरे है हम!Upload to Facebook
    अब खुद से मिलने को मन करता है;
    लोगो से सुना है कि बहुत बुरे है हम!
  • शर्म ओ हया का अख़्तियार इतना रहा हम पर;<br/>
जिसको चाहा उमर भर, उसी को जता ना सके!
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    शर्म ओ हया का अख़्तियार इतना रहा हम पर;
    जिसको चाहा उमर भर, उसी को जता ना सके!
  • ज़ायां ना कर अपने अल्फाज किसी के लिए;<br/>
खामोश रह कर देख तुझे समझता कौन है!Upload to Facebook
    ज़ायां ना कर अपने अल्फाज किसी के लिए;
    खामोश रह कर देख तुझे समझता कौन है!
  • लम्हे लम्हे मैं बसी है तुम्हारी यादों की महक;<br/>
      
यह बात और है मेरी नज़रों से दूर हो तुम!Upload to Facebook
    लम्हे लम्हे मैं बसी है तुम्हारी यादों की महक;
    यह बात और है मेरी नज़रों से दूर हो तुम!
  • झट से बदल दूं, इतनी न हैसियत न आदत है मेरी;<BR/>
रिश्ते हों या लिबास, मैं बरसों चलाता हूँ!Upload to Facebook
    झट से बदल दूं, इतनी न हैसियत न आदत है मेरी;
    रिश्ते हों या लिबास, मैं बरसों चलाता हूँ!
  • सब फूल लेकर गए मैं कांटे ही उठा लाया;<br/>
पड़े रहते तो किसी अपने के पाँव मे जख्म दे|Upload to Facebook
    सब फूल लेकर गए मैं कांटे ही उठा लाया;
    पड़े रहते तो किसी अपने के पाँव मे जख्म दे|
  • हम भी मजबूरियों का उज़्र करें;<br/>
फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ!Upload to Facebook
    हम भी मजबूरियों का उज़्र करें;
    फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ!
    ~ Ahmad Faraz
  • मुझ से लाग़र तेरी आँखों में खटकते तो रहे;<br/>
तुझ से नाज़ुक मेरी नज़रों में समाते भी नहीं!Upload to Facebook
    मुझ से लाग़र तेरी आँखों में खटकते तो रहे;
    तुझ से नाज़ुक मेरी नज़रों में समाते भी नहीं!
    ~ Daagh Dehlvi
  • हथेली पर रखकर नसीब, तु क्यो अपना मुकद्दर ढूँढ़ता है;<br/>
सीख उस समन्दर से, जो टकराने के लिए पत्थर ढूँढ़ता है!Upload to Facebook
    हथेली पर रखकर नसीब, तु क्यो अपना मुकद्दर ढूँढ़ता है;
    सीख उस समन्दर से, जो टकराने के लिए पत्थर ढूँढ़ता है!
  • शाम-ए-ग़म कुछ उस निग़ाह-ए-नाज़ की बातें करो;<br/>
बेखुदी बढ़ती चली है, राज़ की बातें करो!<br/><br/>

शाम-ए-ग़म: दर्द भरी शाम<br/>
निग़ाह-ए-नाज़: प्रेमिका की नज़र<br/>
बेखुदी: बेहोशीUpload to Facebook
    शाम-ए-ग़म कुछ उस निग़ाह-ए-नाज़ की बातें करो;
    बेखुदी बढ़ती चली है, राज़ की बातें करो!

    शाम-ए-ग़म: दर्द भरी शाम
    निग़ाह-ए-नाज़: प्रेमिका की नज़र
    बेखुदी: बेहोशी
    ~ Firaq Gorakhpuri