तुम समझते हो कि जीने की तलब है मुझको, मैं तो इस आस में ज़िंदा हूँ कि मरना कब है। |
धूप लगती थी गाँव में मगर चुभती नहीं थी; ऐ शहर तेरी छांव ने भी पसीने निकाल दिए! |
मिलता ही नही तुम्हारे जैसा कोई और इस शहर मै, हमे क्या मालूम था कि तुम एक हो और वो भी किसी और के! |
किसको क्या मिले इसका कोई हिसाब नहीं; तेरे पास रूह नहीं मेरे पास लिबास नहीं! |
उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें; वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले गया! |
किसको बर्दाश्त है "साहब" तरक़्क़ी आजकल दूसरों की; लोग तो अर्थी की भीड़ देखकर भी जल जाते है! |
अपनी यादों को मिटाना बहुत कठिन है, अपने गम को भूल जाना बहुत कठिन है। जब राहे-मयखानों पर चलते हैं कदम, होश में लौट कर आना बहुत कठिन है। |
मैं तो इस वास्ते चुप हूँ की तमाशा ना बने, और तू समझता है मुझे तुझसे कोई गिला नहीं! |
शिकवे आँखों से गिर पड़े वरना; होठों से शिकायत कब की हमने ! |
समझ में नही आता की किस पर भरोसा करूँ; यहाँ तो लोग नफरत भी मोहब्बत की तरह ही करते है! |