हम अपने दिल के मुकामात से हैं बेगाने; इसी में वरना हरम है, इसी में बुतखाने! मुकामात = स्थान, घर; बेगाना = अपरिचित, अनजान; हरम = काबा, खुदा का घर; बुतखाना - मंदिर, मूर्तिगृह |
दिल को बर्बाद किये जाती है गम बदस्तूर किये जाती है; मर चुकीं सारी उम्मीदें, आरजू है कि जिये जाती है! बदस्तूर = पहले की तरह, यथावत, यथापूर्व |
क्या बताऊँ किस क़दर ज़ंजीर-ए-पा साबित हुए; चंद तिनके जिन को अपना आशियाँ समझा था मैं! ज़ंजीर-ए-पा = पैरों की ज़ंज़ीर |
लुत्फ-ए-बहार कुछ नहीं गो है वही बहार; दिल क्या उजड़ गया कि जमाना उजड़ गया! लुत्फ: आनन्द, मजा |
रहें न रिंद ये वाइज़ के बस की बात नहीं; तमाम शहर है दो-चार-दस की बात नहीं। |
एक उम्र वो थी कि जादू में भी यक़ीन था; एक उम्र ये है कि हक़ीक़त पर भी शक़ है। |
रूठूँगा अगर तुझसे तो इस कदर रूठूँगा कि, ये तेरीे आँखे मेरी एक झलक को तरसेंगी। |
गिर कर उठने तक तो हाथ पकड़े रखा उसने मेरा, जरा सँभल कर चलना सीखा तो फिर से खो गए भीड़ में! |
मेरे फन को तराशा है सभी के नेक इरादों ने; किसी की बेवफाई ने, किसी के झूठे वादों ने। |
कहाँ दूर हट के जायें, हम दिल की सरजमीं से, दोनों जहान की सैरें, हासिल हैं सब यहीं से! सरजमीं = पृथ्वी, जमीन, देश, मुल्क |