Ameer Minai Hindi Shayari

  • गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर';</br>
क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना!</br></br>
*गाहे: कभीUpload to Facebook
    गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर';
    क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना!

    *गाहे: कभी
    ~ Ameer Minai
  • कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद;</br>
याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद!Upload to Facebook
    कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद;
    याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद!
    ~ Ameer Minai
  • वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर;<br/>
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए!Upload to Facebook
    वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर;
    दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए!
    ~ Ameer Minai
  • तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा;<br/>
मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है!Upload to Facebook
    तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा;
    मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है!
    ~ Ameer Minai
  • जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा,<br/>
हया यकलखत आई, और शबाब आहिस्ता-आहिस्ता!Upload to Facebook
    जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा,
    हया यकलखत आई, और शबाब आहिस्ता-आहिस्ता!
    ~ Ameer Minai
  • सरकता जाये है रुख से नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता;<br/>
निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता-आहिस्ता!Upload to Facebook
    सरकता जाये है रुख से नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता;
    निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता-आहिस्ता!
    ~ Ameer Minai
  • वो बे-दर्दी से सर काटें और मैं कहूं उनसे;<br/>
हज़ूृर आहिस्ता-आहिस्ता, जनाब आहिस्ता-आहिस्ता!
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    वो बे-दर्दी से सर काटें और मैं कहूं उनसे;
    हज़ूृर आहिस्ता-आहिस्ता, जनाब आहिस्ता-आहिस्ता!
    ~ Ameer Minai
  • कह रही है हश्र में वो आँख शर्माई हुई,
    हाय कैसे इस भरी महफ़िल में रुसवाई हुई;

    आईने में हर अदा को देख कर कहते हैं वो,
    आज देखा चाहिये किस किस की है आई हुई;

    कह तो ऐ गुलचीं असीरान-ए-क़फ़स के वास्ते,
    तोड़ लूँ दो चार कलियाँ मैं भी मुर्झाई हुई;

    मैं तो राज़-ए-दिल छुपाऊँ पर छिपा रहने भी दे,
    जान की दुश्मन ये ज़ालिम आँख ललचाई हुई;

    ग़म्ज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा सब में हया का है लगाव,
    हाए रे बचपन की शोख़ी भी है शर्माई हुई;

    गर्द उड़ी आशिक़ की तुर्बत से तो झुँझला के कहा,
    वाह सर चढ़ने लगी पाँओं की ठुकराई हुई।
    ~ Ameer Minai
  • ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर';
    सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है।
    ~ Ameer Minai
  • आफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिन;
    मरता हूँ मैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है।
    ~ Ameer Minai