ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है; ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है! |
वो क्या मंज़िल जहाँ से रास्ते आगे निकल जाएँ; सो अब फिर एक सफ़र का सिलसिला करना पड़ेगा! |
दुआ को हाथ उठाते हुए लरज़ता हूँ; कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए! *लरज़ता: Waver, Shake, Quiver |
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं; जान बहुत शर्मिंदा हैं! |
मेरे ख़ुदा मुझे इतना तो मोतबर कर दे; मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे! |
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं; फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं! |
वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी: मैं उस की क़ैद में हूँ क़ैद से रिहाई में भी! |
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है; आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है!s |
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है; ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है!x |
समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं; जो हम से मिल के बिछड़ जाए वो हमारा नहीं; अभी से बर्फ़ उलझने लगी है बालों से; अभी तो क़र्ज़-ए-मह-ओ-साल भी उतारा नहीं; बस एक शाम उसे आवाज़ दी थी हिज्र की शाम; फिर उस के बाद उसे उम्र भर पुकारा नहीं; समंदरों को भी हैरत हुई के डूबते वक़्त; किसी को हम ने मदद के लिए पुकारा नहीं; वो हम नहीं थे तो फिर कौन था सर-ए-बाज़ार; जो कह रहा था के बिकना हमें गवारा नहीं; हम अहल-ए-दिल हैं मोहब्बत की निस्बतों के अमीन; हमारे पास ज़मीनों का गोशवारा नहीं। |