ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को; ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं! |
ख़ुदा बचाए तेरी मस्त मस्त आँखों से: फ़रिश्ता हो वो भी बहक जाए आदमी क्या है! |
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही; जज़्बात में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही! |
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं; जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं! |
ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न आस; सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए! |
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मु्द्दतों में हम; किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हम से पूछिये! |
तेरे दर से उठकर... तेरे दर से उठकर जिधर जाऊं मैं; चलूँ दो कदम और ठहर जाऊं मैं; अगर तू ख़फा हो तो परवा नहीं; तेरा गम ख़फा हो तो मर जाऊं मैं; तब्बसुम ने इतना डसा है मुझे; कली मुस्कुराए तो डर जाऊं मैं; सम्भाले तो हूँ खुदको, तुझ बिन मगर; जो छू ले कोई तो बिखर जाऊं मैं। |
ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक; ना लो इंतिक़ाम मुझ से मेरे साथ साथ चल के। |
वो खफा है तो कोई बात नहीं; इश्क मोहताज-ए-इल्त्फाक नहीं; दिल बुझा हो अगर तो दिन भी है रात नहीं; दिन हो रोशन तो रात रात नहीं; दिल-ए-साकी मैं तोड़ू-ए-वाइल; जा मुझे ख्वाइश-ए-नजात नहीं; ऐसी भूली है कायनात मुझे; जैसे मैं जिस्ब-ए-कायनात नहीं; पीर की बस्ती जा रही है मगर; सबको ये वहम है कि रात नहीं; मेरे लायक नहीं हयात "ख़ुमार"; और मैं लायक-ए-हयात नहीं। |
दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन याद आ गये; दो बाज़ुओ की हार के दिन याद आ गये; गुज़रे वो जिस तरफ से बज़ाए महक उठी; सबको भरी बहार के दिन याद आ गये। |