हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे; बहारें हमको ढूँढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे..! |
बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए; हम एक बार तेरी आरज़ू भी खो देते! |
ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्ना, थी आरजू तेरे दर पे सुबह-ओ-शाम करें! ग़म-ए-हयात = ज़िन्दगी का ग़म |
सैर-ए-साहिल कर चुके ऐ मौज-ए-साहिल सिर ना मार; तुझ से क्या बहलेंगे तूफानों के बहलाए हुए! |
बचा लिया मुझे तूफां की मौज ने वर्ना; किनारे वाले सफीना मेरा डुबो देते। अर्थ: सफीना - नाव |
मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंजिल मगर; लोग आते गए और कारवां बनता गया। |
दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें; तुमको ना हो ख्याल तो हम क्या जवाब दें। |
अलग बैठे थे फिर भी आँख साकी की पड़ी मुझ पर; अगर है तिश्नगी कामिल तो पैमाने भी आयेंगे। अर्थ: तिश्नगी - प्यास, पिपासा, तृष्णा, लालसा, अभिलाषा, इश्तियाक कामिल - पूरा, सम्पूर्ण, मुकम्मल पैमाने - शराब का गिलास, पानपात्र |
हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुमसे ज्यादा, चाक किये हैं हमने अज़ीज़ों चार गरेबाँ तुमसे ज्यादा; चाक-ए-जिगर मुहताज-ए-रफ़ू है आज तो दामन सिर्फ़ लहू है, एक मौसम था हम को रहा है शौक़-ए-बहाराँ तुमसे ज्यादा; जाओ तुम अपनी बाम की ख़ातिर सारी लवें शमों की कतर लो, ज़ख़्मों के महर-ओ-माह सलामत जश्न-ए-चिराग़ाँ तुमसे ज्यादा; ज़ंजीर-ओ-दीवार ही देखी तुमने तो "मजरूह" मगर हम, कूचा-कूचा देख रहे हैं आलम-ए-ज़िंदाँ तुमसे ज्यादा। |
डरा के मौज-ओ-तलातुम से हमनशीनों को; यही तो हैं जो डुबोया किए सफ़ीनों को; शराब हो ही गई है बक़द्रे-पैमाना; ब-अ़ज़्मे-तर्क निचोड़ा जो आस्तीनों को; जमाले-सुबह दिया रू-ए-नौबहार दिया; मेरी निग़ाह भी देता ख़ुदा हसीनों को; हमारी राह में आए हज़ार मैख़ाने; भुला सके न मगर होश के क़रीनों को; कभी नज़र भी उठाई न सू-ए-बादा-ए-नाब; कभी चढ़ा गए पिघला के आबगीनों को; हुए है क़ाफ़िले जुल्मत की वादियों में रवाँ; चिराग़े राह किए ख़ूंचका जबीनों को; तुझे न माने कोई तुझको इससे क्या 'मजरूह'; चल अपनी राह, भटकने दे नुक़्ताचीनों को। |