काँटे तो ख़ैर काँटे हैं इस का गिला ही क्या; फूलों की वारदात से घबरा के पी गया! |
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा; जा चुकी है बहार चुप हो जा! |
लोग कहते हैं रात बीत चुकी; मुझ को समझाओ, मैं शराबी हूँ! |
पूछा किसी ने हाल... पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए; पानी के अक्स चाँद का देखा तो रो दिए; नग़्मा किसी ने साज़ पे छेड़ा तो रो दिए; ग़ुंचा किसी ने शाख़ से तोड़ा तो रो दिए; उड़ता हुए ग़ुबार सर-ए-राह देख कर; अंजाम हम ने इश्क़ का सोचा तो रो दिए; बादल फ़ज़ा में आप की तस्वीर बन गए; साया कोई ख़याल से गुज़रा तो रो दिए; रंग-ए-शफ़क़ से आग शगूफ़ों में लग गई; 'साग़र' हमारे हाथ से छलका तो रो दिए। |
पूछा किसी ने हाल... पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए; पानी में अक्स चाँद का देखा तो रो दिए; नग़्मा किसी ने साज़ पे छेड़ा तो रो दिए; ग़ुंचा किसी ने शाख़ से तोड़ा तो रो दिए; उड़ता हुए ग़ुबार सर-ए-राह देख कर; अंजाम हम ने इश्क़ का सोचा तो रो दिए; बादल फ़ज़ा में आप की तस्वीर बन गए; साया कोई ख़याल से गुज़रा तो रो दिए; रंग-ए-शफ़क़ से आग शगूफ़ों में लग गई; 'साग़र' हमारे हाथ से छलका तो रो दिए। |
उठा कर चूम ली हैं चंद मुरझायी हुई कलियां; न तुम आये तो यूँ जश्न-ए-बहारा कर लिया मैंने। |