चली है मौज में काग़ज़ की कश्ती; उसे दरिया का अंदाज़ा नहीं है! |
हाल-ए-दिल ना-गुफ़्तनी है हम जो कहते भी तो क्या; फिर भी ग़म ये है कि उस ने हम से पूछा ही नहीं। |
उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे; उस एक शख़्स में किस किस को देखता था मैं। |
इश्क़ में जिसके ये अहवाल बना रखा है; अब वही कहता है इस वजह में क्या रखा है; ले चले हो मुझे इस बज्म में यारो लेकिन; कुछ मेरा हाल भी पहले से सुना रखा है। |