अजल भी टल गई देखी गई हालत न आँखों से; शब-ए-ग़म में मुसीबत सी मुसीबत हम ने झेली है! |
हम अपने दिल के मुकामात से हैं बेगाने; इसी में वरना हरम है, इसी में बुतखाने! मुकामात = स्थान, घर; बेगाना = अपरिचित, अनजान; हरम = काबा, खुदा का घर; बुतखाना - मंदिर, मूर्तिगृह |
तेरे कमाल की हद... तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझा; उसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझा; कभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आराम; ग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझा; पयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदा; कई तरह इसी मतलब को नामाबर समझा; न खुल सका तेरी बातों का एक से मतलब; मगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा। |
तेरे कमाल की हद तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझा; उसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझा; कभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आराम; ग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझा; पयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदा; कई तरह इसी मतलब को नामाबर समझा; न खुल सका तेरी बातों का एक से मतलब; मगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा। |
तमाम उम्र नमक-ख़्वार थे ज़मीं के हम; वफ़ा सरिश्त में थी हो रहे यहीं के हम। शब्दार्थ: सरिश्त = जन्मजात गुणवत्ता |
ख़मोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है; तड़प ऐ दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है। |
ख़मोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है; तड़प ऐ दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है। |
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे; तुम्हारे हुस्न की शरहें लिखी हैं इन रिसालों में। |