शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को; मैं देखता रहा दरिया तेरी रवानी को! |
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने; इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने! |
कौन सी बात है जो उस में नहीं, उस को देखे मेरी नज़र से कोई। |
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने; इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने। |
नींद की ओस से... नींद की ओस से पलकों को भिगोये कैसे; जागना जिसका मुकद्दर हो वो सोये कैसे; रेत दामन में हो या दश्त में बस रेत ही है; रेत में फस्ल-ए-तमन्ना कोई बोये कैसे; ये तो अच्छा है कोई पूछने वाला न रहा; कैसे कुछ लोग मिले थे हमें खोये कैसे; रूह का बोझ तो उठता नहीं दीवाने से; जिस्म का बोझ मगर देखिये ढोये कैसे; वरना सैलाब बहा ले गया होगा सब कुछ; आँख की ज़ब्त की ताकीद है रोये कैसे। |
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यों है; अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें। |
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है; हद्द-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है। |
वो जो वह एक अक्स है सहमा हुआ डरा हुआ; देखा है उसने गौर से सूरज को डूबता हुआ; तकता हु कितनी देर से दरिया को मैं करीब से; रिश्ता हरेक ख़त्म क्या पानी से प्यास का हुआ; होठो से आगे का सफर बेहतर है मुल्तवी करे; वो भी है कुछ निढाल सा मैं भी हु कुछ थका हुआ; कल एक बरहना शाख से पागल हवा लिपट गयी; देखा था खुद ये सानिहा, लगता है जो सुना हुआ; पैरो के निचे से मेरे कब की जमीं निकल गयी; जीना है और या नहीं अब तक न फैसला हुआ। |
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई; आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई; आ रही है जिस्म की दीवार गिरने की सदा; एक अजब ख्वाहिश थी जो अब के बरस पूरी हुई। |
ऐसे हिज्र के मौसम... ऐसे हिज्र के मौसम अब कब आते हैं; तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं; जज़्ब करे क्यों रेत हमारे अश्कों को; तेरा दामन तर करने अब आते हैं; अब वो सफ़र की ताब नहीं बाक़ी वरना; हम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं; जागती आँखों से भी देखो दुनिया को; ख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं; काग़ज़ की कश्ती में दरिया पार किया; देखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं। |