लफ़्ज़ का बस है तअ'ल्लुक़ मेरे तेरे दरमियाँ; लफ़्ज़ के मअनी पे क़ाएम सारे रिश्तों का निशाँ! |
हम लोगों से मुलाकातों के लम्हें याद रखते हैं, बातें भूल भी जाएं, चाय पिलाना याद रखते हैं! |
मंज़िल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है; पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है! |
छोटी छोटी खुशियाँ ही तो जीने का सहारा बनती है; ख्वाहिशों का क्या वो तो पल पल बदलती है! |
उनकी दुनिया में हम जैसे हज़ारों हैं; हम ही पागल है जो उसे पाकर मगरूर हो गए! |
मुझसे मेरे गुनाहों का हिसाब ना मांग ऐ खुदा; मेरी तक़दीर लिखने में कलम तेरी ही चली है! |
ज़िम्मेदारियां भी एक इम्तेहान होती है; जो निभाता है न उसी को परेशान करती हैं! |
सही वक्त पर करवा देंगे हदों का एहसास; कुछ तालाब खुद को समुद्र समझ बैठे हैं! |
एक ऐसा समाज बनायें जहाँ लड़कियों को सुरक्षित महसूस करने के लिए अपने भाईयों की ज़रुरत न हो; एक रिव्यात के तौर पे राखी बाँधने के लिए मर्द की कलाइयों की ज़रूरत न हो! |
किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर; 'ईश्वर' बैठा है, तू हिसाब ना कर! |