मुठ्ठियों में कैद है जो खुशियाँ सब में बांट दो; तेरी हो चाहे मेरी हो एक दिन हथेलियां तो खुल ही जानी हैं! |
ठुकराया हमने भी बहुतों को है तेरी खातिर; तुझसे फासला भी शायद उन की बद-दुआओं का असर है! |
कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले; न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई! |
जनाजे लौट के आते, तो उनको सबूत मिल जाते; जांबाज लौट के आ गये, ये क्या बदकिस्मती हो गयी! |
तूने फूँकों से हटाए हैं पहाड़ों के पहाड़; मेरे तलवे पे लुढ़कता हुआ कंकर है ज़रा उसको हटा दे! |
जब तोलने बैठते हो रिश्तों को; जरा बताना दूसरे पलड़े में क्या रखते हो! |
मेरे लफ्ज़ फ़ीके पड़ गए, तेरी एक अदा के सामने; मैं तुझे ख़ुदा कह गई, अपने ख़ुदा के सामने! |
अब रिन्द बच रहे हैं ज़रा तेज़ रक़्स हो; महफ़िल से उठ लिए हैं नमाज़ी तो लीजिए! |
जो व्यस्त थे, वो व्यस्त ही निकले; वक्त पर फ़ालतू लोग ही काम आये! |
तुम्हारा होना इतवार के दिन जैसा है; कुछ सूझता नहीं बस अच्छा लगता है! |