दिल से हर मामला कर के चले थे साफ़ हम, कहने में उनके सामने बात बदल गयी। |
दिल अपने को एक मंदिर बना रखा है, उस के अंदर बस तुझ को बसा रखा है, रखता हूँ तेरी चाहत की तमन्ना रात दिन, तेरे आने की उम्मीद का दिया जला रखा है। |
अब आ गए हैं आप तो आता नहीं है याद; वर्ना कुछ हम को आप से कहना ज़रूर था। |
किसी की क्या मज़ाल थी जो कोई हमें खरीद सकता; हम तो खुद ही बिक गए खरीददार देख कर। |
अभी कम-सिन हो रहने दो कहीं खो दोगे दिल मेरा; तुम्हारे ही लिए रखा है ले लेना जवाँ हो कर। |
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना; बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़-दाँ अपना। |
दिल में आप हो और कोई खास कैसे होगा; यादों में आपके सिवा कोई पास कैसे होगा; हिचकियॉं कहती हैं आप याद करते हो; पर बोलोगे नहीं तो मुझे एहसास कैसे होगा। |
क्या अच्छा क्या बुरा क्या भला देखा; जब भी देखा तुझे अपने रु ब रु देखा; सोचा बहुत भूल कर ना सोचूंगा तुझे; जिस रात आँख लगी फिर तुझे हर ख्वाब में देखा। |
आहिस्ता आहिस्ता आपका यकीन करने लगे हैं; आहिस्ता आहिस्ता आपके करीब आने लगे हैं; दिल तो देने से घबराते हैं मगर; आहिस्ता आहिस्ता आपके दिल की कदर करने लगे हैं। |
कल तेरा जिक्र हुआ महफ़िल में, और महफ़िल देर तक महकती रही। |