अंधेरा इतना है कि शहर के मुहाफिज़ को, हर एक रात कोई घर जलाना पड़ता है! |
जुबां तीखी हो तो खंजर से गहरा ज़ख्म देती है, और मीठी हो तो वैसे ही कत्ल कर देती है! |
खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर से पहले; ख़ुदा बन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है! |
सीढ़ियाँ उनके लिए बनी हैं जिन्हें छत पर जाना है; लेकिन जिनकी नज़र आसमान पर हो उन्हें तो रास्ता ख़ुद बनाना है! |
थी ख़बर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुर्ज़े; देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ! |
चंद सिक्कों में बिकता है इंसान का ज़मीर यहां; कौंन कहता है मेरे मुल्क में महंगाई बहुत है! |
इश्क़वालों में बड़प्पन बहुत ज़रूरी है; छोटे दिल मे महबूब बसाये नहीँ जातें! |
नए रिश्ते जो न बन पाएं तो मलाल मत करना; पुराने टूटने न पाएं बस इतना ख्याल रखना! |
परख अगर हीरे की करनी है तो अंधेरे का इन्तजार करो; वरना धूप में तो काँच के टुकड़े भी चमकते हैं! |
ऐ आसमान तेरे ख़ुदा का नहीं है ख़ौफ़; डरते हैं ऐ ज़मीन तेरे आदमी से हम! |