दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे; दिन कहीं रात कहीं सुब्ह कहीं शाम कहीं! |
हमारी तो तासीर ही यूँ है तावीजों की तरह; जिसके भी गले मिलते हैं उसकी बरकत हो जाती है! |
सच के हक़ में खड़ा हुआ जाए; जुर्म भी है, तो ये किया जाए; हर मुसाफ़िर को ये शऊर कहाँ; कब रुका जाए, कब चला जाए! |
रहने दे उधार इक मुलाकात यूँ ही; सुना है उधार वालों को लोग भुलाया नहीं करते! |
सुना है आज समंदर को बड़ा गुमान आया है, उधर ही ले चलो कश्ती जहाँ तूफान आया है। |
सच को तमीज़ ही नहीं बात करने की; झूठ को देखो, कितना मीठा बोलता है। |
एक तेरी ज़िद्द ने हमें किस हाल में ला दिया, जो जज़्बात सिर्फ़ तेरे लिए थे, उन्हें ज़माना पढ़ रहा है! |
जहाँ कमरों में कैद हो जाती है "जिंदगी", लोग उसे "बड़ा शहर" कहते हैं! |
वही ज़मीन है वही आसमान वही हम तुम; सवाल यह है ज़माना बदल गया कैसे! |
वो शायद मतलब से मिलते है; मुझे तो मिलने से मतलब है! |