हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे; बहारें हमको ढूँढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे..! |
मुझे कहाँ फ़ुर्सत है कि मैं मौसम सुहाना देखूँ; आपसे मेरी नज़र हटे तो मैं ये ज़माना देखूँ! |
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे; चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे! इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी; लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे! |
इश्क़ वालों को फ़ुर्सत कहाँ, कि वो गम लिखेंगे; अरे कलम इधर लेकर आओ, बेवफ़ा के बारे में हम लिखेंगे! |
नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने; क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने! खेल समझा है कहीं छोड़ न दे भूल न जाए; काश यूँ भी हो कि बिन मेरे सताए न बने! बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न उठे; काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने! इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'; कि लगाए न लगे और बुझाए न बने! |
तुझ से बिछड़ कर भी ज़िंदा था; मर मर कर ये ज़हर पिया है! चुप रहना आसान नहीं था; बरसों दिल का ख़ून किया है! जो कुछ गुज़री जैसी गुज़री; तुझ को कब इल्ज़ाम दिया है! अपने हाल पे ख़ुद रोया हूँ; ख़ुद ही अपना चाक सिया है! कितनी जाँकाही से मैं ने; तुझ को दिल से महव किया है! सन्नाटे की झील में तू ने; फिर क्यों पत्थर फेंक दिया है! |
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी; अब किसी बात पर नहीं आती! है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ; वर्ना क्या बात कर नहीं आती!! |
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे; होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे! |
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त; मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ! |
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना; दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना! |