पूछ रही है आज मेरी शायरियाँ मुझसे कि; कहाँ उड़ गये वो परिंदे जो वाह वाह किया करते थे! |
तुम उलझे रहे हमें आजमाने में; और हम हद से गुजर गए तुम्हें चाहने में! |
बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा; ख़ुमार आप काफ़िर हुए जा रहे हैं! |
मेरी आवाज़ ही पर्दा है मेरे चेहरे का; मैं हूँ ख़ामोश जहाँ, मुझको वहाँ से सुनिए! |
कल तुझसे बिछड़ने का फैंसला कर लिया था; आज अपने ही दिल को रिश्वत दे रहा हूँ! |
हजारों महफिलें हैं और लाखों मेले हैं; पर जहाँ तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं! |
यहाँ सब खामोश हैं, कोई भी आवाज़ नहीं करता; सच बोल कर कोई किसी को नाराज़ नहीं करता। |
बहुत अलग सा है मेरे दिल का हाल; एक तेरी ख़ामोशी और मेरे लाखों सवाल! |
लोग कहते हैं पिये बैठा हूँ मैं; खुद को मदहोश किये बैठा हूँ मैं; जान बाकी है वो भी ले लीजिये; दिल तो पहले ही दिये बैठा हूँ मैं! |
आईना फैला रहा है खुदफरेबी का ये मर्ज; हर किसी से कह रहा है आप सा कोई नहीं! |