फूल की पती से कट सकता है हीरे का जिगर; मर्दे नादाँ पर कलाम-ऐ-नरम-ऐ-नाज़ुक बेअसर! |
खुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में; माँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं में; तुम चाट पे नहीं आये मैं घर से नहीं निकल; यह चाँद बहुत भटकता है सावन की घटाओं में! |
तुम्हारे साथ खामोश भी रहूँ तो बातें पूरी हो जाती हैं; तुम में, तुम से, तुम पर ही मेरी दुनिया पूरी हो जाती है! |
हमेशा फूलों की तरह, अपनी आदत से बेबस रहिये; तोडने वाले को भी, खुशबू की सजा देते रहिये! |
ना जाने जिंदगी का, ये कैसा दौर है, इंसान खामोश है, और ऑनलाइन कितना शोर है। |
थोड़ा सा बचपन साथ रखियेगा जिंदगी की शाम में, उम्र महसूस ही न होगी, सफ़र के आखरी मुकाम में! |
खुदा तो इक तरफ, खुद से भी कोसों दूर होता है, बशर जिस वक्त ताकत के नशे में चूर होता है! बशर - मानव |
चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ, चंद हसीनों के खतूत; बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला! |
गलतफहमी से बढ़कर दोस्ती का दुश्मन नहीं कोई, परिंदों को उड़ाना हो तो बस शाख़ें हिला दीजिए! |
ये कश्मकश है ज़िंदगी की, कि कैसे बसर करें; चादर बड़ी करें या, ख़्वाहिशे दफ़न करे! |