ग़ज़ल Hindi Shayari

  • मिलने को तो ज़िंदगी में...

    मिलने को तो ज़िंदगी में कईं हमसफ़र मिले;
    पर उनकी तबियत से अपनी तबियत नही मिली;​​

    चेहरों में दूसरों के तुझे ढूंढते रहे दर-ब-दर;
    सूरत नही मिली, तो कहीं सीरत नही मिली;​​
    ​​
    ​बहुत देर से आया था वो मेरे पास यारों​​;​​
    ​अल्फाज ढूंढने की भी मोहलत नही मिली​​;​​
    ​​
    तुझे गिला था कि तवज्जो न मिली तुझे;​​
    ​ मगर हमको तो खुद अपनी मुहब्बत नही मिली​​;​​

    ​हमे तो तेरी हर आदत अच्छी लगी "फ़राज़"​​;
    पर अफ़सोस तेरी आदत से मेरी आदत नही मिली​।
    ~ Ahmad Faraz
  • ​बहुत पानी बरसता है...

    बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है;
    न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है;

    यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे;
    यही मौसम हैं अब सीने में सर्दी बैठ जाती है;

    चलो माना कि शहनाई मोहब्बत की निशानी है;
    मगर वो शख़्स जिसकी आ के बेटी बैठ जाती है;

    बढ़े बूढ़े कुएँ में नेकियाँ क्यों फेंक आते हैं;
    कुएँ में छुप के क्यों आख़िर ये नेकी बैठ जाती है;

    नक़ाब उलटे हुए गुलशन से वो जब भी गुज़रता है;
    समझ के फूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है...
    ~ Munawwar Rana
  • ​पत्थर के जिगर वालों....

    पत्थर के जिगर वालों गम में वो रवानी है;
    खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है;

    फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है;
    उस में तेरी जुल्फों की बेतरतीब कहानी है;

    इक जहने परेशां में वो फूल सा चेहरा है;
    पत्थर की हिफाज़त में शीशे की जवानी है;

    क्यों चाँदनी रातों में दरिया पे नहाते हो;
    सोये हुए पानी में क्या आग लगानी है;

    इस हौसले दिल पर हम ने भी कफ़न पहना;
    हँस कर कोई पूछेगा क्या जान गंवानी है;

    रोने का असर दिल पर रह रह के बदलता है;
    आँसूं कभी शीशा है आँसूं कभी पानी है...
    ~ Bashir Badr
  • रहने को सदा...

    ​रहने को सदा दहर में​ आता नहीं कोई​;
    तुम जैसे गए ऐसे भी​ जाता नहीं कोई;​​​

    ​एक बार तो​ खुद मौत भी​ घबरा गयी होगी​;​
    यूँ मौत को​ सीने से लगाता नहीं कोई;​

    ​​डरता हूँ​ कहीं खुश्क़ न हो जाए समुन्दर​;​
    राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई;​​

    ​​ साक़ी से गिला था तुम्हें मैख़ाने से शिकवा​;​
    अब ज़हर से भी प्यास बुझाता नहीं कोई;​​
    ​​
    ​​माना कि उजालों ने तुम्हे दाग़ दिए थे​;​
    बे-रात ढले​ शम्मा​ बुझाता नहीं कोई​।
    ~ Kaifi Azmi
  • राज़े-उल्फ़त छुपा के​...​​

    राज़े-उल्फ़त ​छुपा के देख लिया​;
    दिल बहुत कुछ​, जला के देख लिया​;

    और क्या देखने को बाक़ी है​;​
    ​​ आप से दिल​, लगा के देख लिया;​​
    ​​
    वो मिरे हो के भी​ मेरे न हुए​;
    ​​उनको अपना, बना के देख लिया;​​

    ​​आज उनकी नज़र में​ कुछ हमने​;
    ​​सबकी नज़रें बचा के​, देख लिया;​​

    ​​आस उस दर से​, टूटती ही नहीं​;​
    ​​जा के देखा, न जा के देख लिया;​​

    ​​'फ़ैज़' तक़्मील-ए-ग़म भी हो न सकी​;​
    ​​​इश्क़ को आज़मा के​, देख लिया​।
    ~ Faiz Ahmad Faiz
  • मियाँ मैं शेर हूँ...

    मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती;
    मैं लहजा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती;

    मैं इक दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था;
    मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़ुवाहट नहीं जाती;

    जहाँ मैं हूँ वहीं आवाज़ देना जुर्म ठहरा है;
    जहाँ वो है वहाँ तक पाँव की आहट नहीं जाती;

    मोहब्बत का ये ज़ज्बा जब ख़ुदा की देन है भाई;
    तो मेरे रास्ते से क्यों ये दुनिया हट नहीं जाती;

    वो मुझसे बेतकल्लुफ़ हो के मिलता है मगर;
    न जाने क्यों मेरे चेहरे से घबराहट नहीं जाती।
    ~ Munawwar Rana
  • झूठी बुलंदियों का धुँआ​...​

    ​झूठी बुलंदियों का धुँआ पार कर के आ​;​​
    ​क़द नापना है मेरा तो छत से उतर के आ;​
    ​​​
    इस पार मुंतज़िर हैं तेरी खुश-नसीबियाँ​;
    ​लेकिन ये शर्त है कि नदी पार कर के आ;​
    ​​
    ​​​कुछ दूर मैं भी दोशे-हवा पर सफर करूँ​;
    ​कुछ दूर तू भी खाक की.. सुरत बिखर के आ​;​

    ​मैं धूल में अटा हूँ मगर तुझको क्या हुआ;​​
    ​ आईना देख जा ज़रा घर जा सँवर के आ;
    ​​
    सोने का रथ फ़क़ीर के घर तक न आयेगा;​​​
    कुछ माँगना है हमसे तो पैदल उतर के आ​।
    ~ Rahat Indori
  • आज फिर दिल ने कहा...

    ​आज फिर दिल ने कहा आओ भुला दे यादें;
    जिंदगी बीत गई और वही यादे-यादें;

    जिस तरह आज ही बिछड़े हो बिछड़ने वाले;
    जेसे एक उम्र के दुःख याद दिला दे यादें;

    काश मुमकिन हो कि इक कागजी कश्ती की तरह;
    खुद फरामोशी के दरिया में बहा दे यादें;

    वो भी रुत आये कि ए-जुद-फरामोश मेरे;
    फूल पते तेरी यादों में बिछा दे यादें;

    भूल जाना भी तो इक तरह की नेअमत है'फ़राज';
    वरना इंसान को पागल न बना दे यादें।
    ~ Ahmad Faraz
  • ​कल रोक नहीं पाए​...

    ​कल रोक नहीं पाए जिसे तीरों-तबर भी​;​
    ​ अब उसको थका देती है इक राहगुज़र भी​;​
    ​​
    ​​​​​इस डर से कभी गौर से देखा नहीं तुझको​;​
    ​​कहते हैं कि लग जाती है अपनों की नज़र भी​;​
    ​​
    ​​​​​कुछ मेरी अना भी मुझे झुकने नहीं देती​;​
    ​​कुछ इसकी इजाज़त नहीं देती है कमर भी​;​
    ​​
    ​​​​​तुम सूखी हुई शाखों का अफ़सोस न करना​;​
    ​​आँधी तो गिरा देती है मजबूत शजर भी​;​​​
    ​​​
    ​​वो मुझसे वहाँ कीमते-जाँ पूछ रहा है​;​
    ​​ महफूज़ नहीं है जहाँ अल्लाह का घर भी​।
    ~ Munawwar Rana
  • इश्क में जीत के आने​...
    ​​
    ​इश्क में जीत के आने के लिए काफी हूँ;​​
    मै अकेला ही जमाने के लिए काफी हूँ​;​​

    मेरे हर हकीकत को मेरे ख्वाब समझने वाले​;​​
    मै तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ​;​​

    मेरे बच्चो, मुझे दिल खोल के तुम खर्च करो;​
    ​मै अकेला ही कमाने के लिए काफी हूँ।
    ~ Rahat Indori