मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे; तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे! |
नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम, बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करें हम; ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी, कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम! *बरपा: होना |
अब तो चुप-चाप शाम आती है; पहले चिड़ियों के शोर होते थे! |
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए; तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया! |
उस गली ने ये सुन के सब्र किया; जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं! |
क्यों चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो; तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो! |
आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम; उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब में! |
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही; जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है! |
वस्ल में रंग उड़ गया मेरा; क्या जुदाई को मुँह दिखाऊँगा! *वस्ल: मिलन |
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं; जान बहुत शर्मिंदा हैं! |