बड़े ही अजीब हैं ये ज़िन्दगी के रास्ते, अनजाने मोड़ पर कुछ लोग अपने बन जाते हैं, मिलने की खुशी दें या न दें, मगर बिछड़ने का गम ज़रूर दे जाते हैं! |
जिसकी आँखों में काटी थी सदियाँ; उसने सदियों की जुदाई दी है! |
जाते-जाते उसके आखिरी अल्फाज़ यही थे; जी सको तो जी लेना मर जाओ तो बेहतर है! |
दिल से निकली ही नहीं शाम जुदाई वाली; तुम तो कहते थे बुरा वक़्त गुज़र जाता है! |
आज भी कितना नादान है दिल समझता ही नहीं; बाद बरसों के उन्हें देखा तो दुआएँ माँग बैठा! |
तुम दोस्त बनके ऐसे आए जिंदगी में, कि हम ये जमाना ही भूल गये, तुम्हें याद आए ना आए हमारी कभी, पर हम तो तुम्हें भुलाना ही भूल गये! |
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था; वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था! |
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें; जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें! |
बारिश के बाद तार पर टंगी आखिरी बूँद से पूछना, क्या होता है अकेलापन! |
बिछड़ गए हैं जो उनका साथ क्या माँगू; ज़रा सी उम्र बाकी है इस गम से निजात क्या माँगू; वो साथ होते तो होती ज़रूरतें भी हमें; अपने अकेले के लिए कायनात क्या माँगू! |