आज कैसी हवा चली ऐ 'फिराक'; आँख बेइख्तियार भर आई। |
मैं एक उलझी सी पहेली हूँ; खुद की सुलझी सी सहेली हूँ; चाँदनी रात में सपनो को बुनती हूँ; दिन के उजाले में उनको ढूंढती हूँ! |
अपना गम किस तरह से बयान करूँ, आग लग जायेगी इस जमाने में। |
किन लफ्ज़ो में बयां करूँ अपने दर्द को; सुनने वाले तो बहुत हैं समझने वाला कोई नहीं! |
कितना कुछ जानता होगा वो शख्स मेरे बारे में; मेरे मुस्कुराने पर भी जिसने पूछ लिया कि तुम उदास क्यों हो! |
हक़ीक़त हो तुम कैसे तुझे सपना कहूँ; तेरे हर दर्द को मैं अपना कहूँ; सब कुछ क़ुर्बान है मेरे यार पर; कौन है तेरे सिवा जिसे मैं अपना कहूँ! |
इस दुनिया में अजनबी रहना ही ठीक है; लोग बहुत तकलीफ देते है अक्सर अपना बना कर! |
ख़ाली नहीं रहा कभी आँखों का ये मकान, सब अश्क़ बाहर गये तो उदासी ठहर गयी। |
आदत बना ली मैंने खुद को तकलीफ देने की; ताकि जब कोई अपना तकलीफ दे तो ज्यादा तकलीफ ना हो! |
आया था एक शख्स मेरा दर्द बाँटने; रुखसत हुआ तो अपना भी गम दे गया मुझे! |