दर्द Hindi Shayari

  • डूबी हैं मेरी उँगलियाँ मेरे ही खून में,
    ये काँच के टुकड़ों पर भरोसे की सजा है।
  • सिखा ना सकी जो उम्र भर तमाम किताबें मुझे,<br/>
फिर करीब से कुछ चेहरे पढ़े और ना जाने कितने सबक सीख लिए।Upload to Facebook
    सिखा ना सकी जो उम्र भर तमाम किताबें मुझे,
    फिर करीब से कुछ चेहरे पढ़े और ना जाने कितने सबक सीख लिए।
  • कोई मुझ सा मुस्तहके़-रहमो-ग़मख़्वारी नहीं,<br/>
सौ मरज़ है और बज़ाहिर कोई बीमारी नही;<br/>
इश्क़ की नाकामियों ने इस तरह खींचा है तूल,<br/>
मेरे ग़मख़्वारों को अब चाराये-ग़मख़्वारी नही।Upload to Facebook
    कोई मुझ सा मुस्तहके़-रहमो-ग़मख़्वारी नहीं,
    सौ मरज़ है और बज़ाहिर कोई बीमारी नही;
    इश्क़ की नाकामियों ने इस तरह खींचा है तूल,
    मेरे ग़मख़्वारों को अब चाराये-ग़मख़्वारी नही।
    ~ Nazar Lakhnawi
  • पतंग सी है ज़िन्दगी कहाँ तक जाएगी,<br/>
रात हो या उम्र एक ना एक दिन कट ही जाएगी।Upload to Facebook
    पतंग सी है ज़िन्दगी कहाँ तक जाएगी,
    रात हो या उम्र एक ना एक दिन कट ही जाएगी।
  • काँच जैसा बनने के बाद पता चलता है कि,<br/>
उसको टूटना भी उसी की तरह पड़ता है।Upload to Facebook
    काँच जैसा बनने के बाद पता चलता है कि,
    उसको टूटना भी उसी की तरह पड़ता है।
  • जब्त कहता है ख़ामोशी से बसर हो जाये,<br/>
दर्द की ज़िद्द है कि दुनिया को खबर हो जाये।Upload to Facebook
    जब्त कहता है ख़ामोशी से बसर हो जाये,
    दर्द की ज़िद्द है कि दुनिया को खबर हो जाये।
  • ना वो मिलती है ना मैं रुकता हूँ,<br/>
पता नहीं रास्ता गलत है या मंज़िल।Upload to Facebook
    ना वो मिलती है ना मैं रुकता हूँ,
    पता नहीं रास्ता गलत है या मंज़िल।
  • हम मरीज इश्क़ के वो भी थे हकीम-ए-दिल,<br/>
दीदार की दवा दी कुछ पल के लिए फिर दर्द की पुड़िया बांध दी।Upload to Facebook
    हम मरीज इश्क़ के वो भी थे हकीम-ए-दिल,
    दीदार की दवा दी कुछ पल के लिए फिर दर्द की पुड़िया बांध दी।
  • भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें;<br/>
आ मेरे दिल मेरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें।Upload to Facebook
    भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें;
    आ मेरे दिल मेरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें।
    ~ Aitbar Sajid
  • उसकी पलकों से आँसू को चुरा रहे थे हम,<br/>
उसके ग़मो को हंसीं से सजा रहे थे हम,<br/>
जलाया उसी दिये ने मेरा हाथ,<br/>
जिसकी लो को हवा से बचा रहे थे हम।Upload to Facebook
    उसकी पलकों से आँसू को चुरा रहे थे हम,
    उसके ग़मो को हंसीं से सजा रहे थे हम,
    जलाया उसी दिये ने मेरा हाथ,
    जिसकी लो को हवा से बचा रहे थे हम।