जाने क्या था जाने क्या है जो मुझसे छूट रहा है, यादें कंकर फेंक रही हैं और दिल अंदर से टूट रहा है। |
कभी संभले तो कभी बिखरते आये हम; जिंदगी के हर मोड़ पर खुद में सिमटते आये हम; यूँ तो जमाना कभी खरीद नहीं सकता हमें; मगर प्यार के दो लफ्जो में सदा बिकते आये हम; |
कितना और बदलूँ खुद को, जीने के लिए ऐ ज़िन्दगी; मुझमें थोडा सा तो मुझको बाकी रहने दे। |
एहसास बदल जाते हैं बस और कुछ नहीं, वरना नफरत और मोहब्बत एक ही दिल से होती है। |
ज़रूरी तो नहीं था हर चाहत का मतलब इश्क़ हो; कभी कभी कुछ अनजान रिश्तों के लिए दिल बेचैन हो जाता है। |
गम तो है हर एक को, मगर हौसला है जुदा जुदा; कोई टूट कर बिखर गया, कोई मुस्कुरा के चल दिया। |
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत; लेते न कभी भूल के हम नाम-ए-मोहब्बत। |
शिखर पर खड़ी हूँ मंज़िल के मैं; पैरों को घेरे यह फिर कैसे भंवर हैं। |
उदासी तुम पे बीतेगी तो तुम भी जान जाओगे कि, कितना दर्द होता है नज़र अंदाज़ करने से। |
हम तो सोचते थे कि लफ्ज़ ही चोट करते हैं; मगर कुछ खामोशियों के ज़ख्म तो और भी गहरे निकले। |