ये तन्हा सी ज़िन्दगी डराती है मुझे हर शाम; एहसान है की एक खोखली हिम्मत देता है ये जाम! |
पीने से कर चुका था मैं तौबा दोस्तों; बादलो का रंग देख नीयत बदल गई! |
यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं; मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे! |
पीते थे शराब हम उसने छुड़ाई अपनी कसम देकर; महफ़िल में यारों ने पिलाई उसी की कसम देकर।x |
रात को पी, सुबह को तौबा की; रिन्ध के रिन्ध रहे, हाथ से जन्नत ना गयी! |
आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'; जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए! |
ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ; क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया! |
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गयी; आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गयी। |
ये ना पूछ मैं शराबी क्यों हुआ, बस यूँ समझ ले; गमों के बोझ से, नशे की बोतल सस्ती लगी। |
कभी उलझ पड़े खुदा से कभी साक़ी से हंगामा; ना नमाज अदा हो सकी ना शराब पी सके। |