बेवक्त, बेवजह, बे-सबब सी बेरुखी तेरी; फिर भी, बेइंतेहा, बेताब सी चाहत की बेबसी मेरी! |
मेरे अकेलेपन का मजाक बनाने वालो जरा ये तो बताओ; जिस भीड़ में तुम खडे हो उसमें कौन तुम्हारा है! |
तेरी महफ़िल और मेरी आँखें; दोनों भरी-भरी हैं! |
बरसों बाद भी, तेरी ज़िद्द की आदत ना बदली; काश हम मोहब्बत नहीं, तेरी आदत होते! |
अगर मैं भी मिजाज़ से पत्थर होता; तो खुदा होता या तेरा दिल होता! |
कहने की तलब नहीं कुछ बस; तुम्हारे आस-पास होने की ख़्वाहिश है! |
वो इत्रदान सा लहज़ा मेरे बुजुर्गों का; रची बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुशबू! |
बड़ी तलब लगी है खुद को आजमाने की; कहो तो यादों के तूफानों का रुख मोड़ दूँ! |
कल तक उड़ती थी जो मुँह तक आज पैरों से लिपट गई; चंद बूँदे क्या बरसी बरसात की धूल की फ़ितरत ही बदल गई! |
इस छोटे से दिल में किस किस को जगह दूँ मैं; गम रहें, दम रहे, फरियाद रहे या तेरी याद! |