मैं जिस्म ओ जान के खेल में बे-बाक हो गया; किस ने ये छू दिया है कि मैं चाक हो गया; किस ने कहा वजूद मेरा खाक हो गया; मेरा लहू तो आप की पोशाक हो गया! |
कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले; न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई! |
इंतजार अक्सर वही अधूरे रह जाते हैं; जो बहुत शिद्दत से किए जाते हैं! |
छोड दी हमने हमेशा के लिए उसकी आरजू करनी; जिसे मोहब्बत की कद्र ना हो उसे दुआओ में क्या माँगना! |
नज़रिया बदल के देख, हर तरफ नज़राने मिलेंगे; ऐ ज़िन्दगी यहाँ तेरी तकलीफों के भी दीवाने मिलेंगे! |
बंध जाये किसी से रूह का बंधन; तो इजहार ए मोहब्बत को अल्फ़ाज़ों की जरुरत नहीं होती! |
पलकों में आँसू और दिल में दर्द सोया है; हँसने वालों को क्या पता रोने वाला किस कदर रोया है; ये तो बस वो ही जान सकता है, मेरी तन्हाई का आलम; जिसने ज़िंदगी में, किसी को पाने से पहले खोया हो! |
जनाजे लौट के आते, तो उनको सबूत मिल जाते; जांबाज लौट के आ गये, ये क्या बदकिस्मती हो गयी! |
इतना शौंक मत रखो इन इश्क की गलियों में जाने का; क़सम से रास्ता जाने का है आने का नहीं! |
एक बार उसने कहा था मेरे सिवा किसी से प्यार ना करना; बस फिर क्या था तब से मोहब्बत की नजर से हमने खुद को भी नहीं देखा! |