पूछ रही है आज मेरी शायरियाँ मुझसे कि; कहाँ उड़ गये वो परिंदे जो वाह वाह किया करते थे! |
तुम उलझे रहे हमें आजमाने में; और हम हद से गुजर गए तुम्हें चाहने में! |
किसको बर्दाश्त है खुशी आजकल; लोग तो दूसरों की अंतिम यात्रा की भीङ देखकर भी जल जाते हैं! |
जेब में क्यों रखते हो खुशी के लम्हें जनाब; बाँट दो इन्हें ना गिरने का डर, ना चोरी का! |
मेरी शायरी को इतनी शिद्दत से ना पढा करो; गलती से कुछ समझ आ गया तो बेमतलब उलझ जाओगे! |
और भी कर देता है दर्द में इज़ाफ़ा; तेरे होते हुए गैरों का दिलासा देना! |
मेरे लफ्ज़ फ़ीके पड़ गए, तेरी एक अदा के सामने; मैं तुझे ख़ुदा कह गई, अपने ख़ुदा के सामने! |
बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा; ख़ुमार आप काफ़िर हुए जा रहे हैं! |
अब रिन्द बच रहे हैं ज़रा तेज़ रक़्स हो; महफ़िल से उठ लिए हैं नमाज़ी तो लीजिए! |
जो व्यस्त थे, वो व्यस्त ही निकले; वक्त पर फ़ालतू लोग ही काम आये! |