आँसू जानते हैं कौन अपना है, तभी अपनों के आगे निकलते हैं; मुस्कुराहट का क्या है, ग़ैरों से भी वफ़ा कर लेती है! |
मैं ज़हर तो पी लूँ शौक़ से तेरी ख़ातिर; पर शर्त ये है कि तुम सामने बैठ कर सासों को टूटता देखो। |
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू; मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना। |
ख़ाली नही रहा कभी आँखों का ये मकान; सब अश्क़ बाहर गये तो उदासी ठहर गई! |
तेरी महफ़िल और मेरी आँखें; दोनों भरी-भरी हैं! |
पलक से पानी गिरा है तो उसको गिरने दो; कोई पुरानी तमन्ना पिघल रही है पिघलने दो! |
वो क्या समझेगा मेरी आँखों का बरसना; जो बादल के बरसने पर बहुत खुश होता है! |
मोहब्बत का अश्कों से, कुछ तो रिश्ता जरूर है; तमाम उम्र न रोने वाले की भी, इश्क़ में आँख भीग गई! |
बहुत अंदर तक तबाही मचाता है वो आँसू; जो पलकों से बाहर नहीं आ पाता।! |
साहिल पे बैठे यूँ सोचते हैं आज, कौन ज्यादा मजबूर है; ये किनारा जो चल नहीं सकता, या वो लहर जो ठहर नहीं सकती! |