मिलने को तो ज़िंदगी में... मिलने को तो ज़िंदगी में कईं हमसफ़र मिले; पर उनकी तबियत से अपनी तबियत नही मिली; चेहरों में दूसरों के तुझे ढूंढते रहे दर-ब-दर; सूरत नही मिली, तो कहीं सीरत नही मिली; बहुत देर से आया था वो मेरे पास यारों; अल्फाज ढूंढने की भी मोहलत नही मिली; तुझे गिला था कि तवज्जो न मिली तुझे; मगर हमको तो खुद अपनी मुहब्बत नही मिली; हमे तो तेरी हर आदत अच्छी लगी "फ़राज़"; पर अफ़सोस तेरी आदत से मेरी आदत नही मिली। |
बहुत पानी बरसता है... बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है; न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है; यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे; यही मौसम हैं अब सीने में सर्दी बैठ जाती है; चलो माना कि शहनाई मोहब्बत की निशानी है; मगर वो शख़्स जिसकी आ के बेटी बैठ जाती है; बढ़े बूढ़े कुएँ में नेकियाँ क्यों फेंक आते हैं; कुएँ में छुप के क्यों आख़िर ये नेकी बैठ जाती है; नक़ाब उलटे हुए गुलशन से वो जब भी गुज़रता है; समझ के फूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है... |
पत्थर के जिगर वालों.... पत्थर के जिगर वालों गम में वो रवानी है; खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है; फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है; उस में तेरी जुल्फों की बेतरतीब कहानी है; इक जहने परेशां में वो फूल सा चेहरा है; पत्थर की हिफाज़त में शीशे की जवानी है; क्यों चाँदनी रातों में दरिया पे नहाते हो; सोये हुए पानी में क्या आग लगानी है; इस हौसले दिल पर हम ने भी कफ़न पहना; हँस कर कोई पूछेगा क्या जान गंवानी है; रोने का असर दिल पर रह रह के बदलता है; आँसूं कभी शीशा है आँसूं कभी पानी है... |
रहने को सदा... रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई; तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई; एक बार तो खुद मौत भी घबरा गयी होगी; यूँ मौत को सीने से लगाता नहीं कोई; डरता हूँ कहीं खुश्क़ न हो जाए समुन्दर; राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई; साक़ी से गिला था तुम्हें मैख़ाने से शिकवा; अब ज़हर से भी प्यास बुझाता नहीं कोई; माना कि उजालों ने तुम्हे दाग़ दिए थे; बे-रात ढले शम्मा बुझाता नहीं कोई। |
राज़े-उल्फ़त छुपा के... राज़े-उल्फ़त छुपा के देख लिया; दिल बहुत कुछ, जला के देख लिया; और क्या देखने को बाक़ी है; आप से दिल, लगा के देख लिया; वो मिरे हो के भी मेरे न हुए; उनको अपना, बना के देख लिया; आज उनकी नज़र में कुछ हमने; सबकी नज़रें बचा के, देख लिया; आस उस दर से, टूटती ही नहीं; जा के देखा, न जा के देख लिया; 'फ़ैज़' तक़्मील-ए-ग़म भी हो न सकी; इश्क़ को आज़मा के, देख लिया। |
मियाँ मैं शेर हूँ... मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती; मैं लहजा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती; मैं इक दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था; मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़ुवाहट नहीं जाती; जहाँ मैं हूँ वहीं आवाज़ देना जुर्म ठहरा है; जहाँ वो है वहाँ तक पाँव की आहट नहीं जाती; मोहब्बत का ये ज़ज्बा जब ख़ुदा की देन है भाई; तो मेरे रास्ते से क्यों ये दुनिया हट नहीं जाती; वो मुझसे बेतकल्लुफ़ हो के मिलता है मगर; न जाने क्यों मेरे चेहरे से घबराहट नहीं जाती। |
झूठी बुलंदियों का धुँआ... झूठी बुलंदियों का धुँआ पार कर के आ; क़द नापना है मेरा तो छत से उतर के आ; इस पार मुंतज़िर हैं तेरी खुश-नसीबियाँ; लेकिन ये शर्त है कि नदी पार कर के आ; कुछ दूर मैं भी दोशे-हवा पर सफर करूँ; कुछ दूर तू भी खाक की.. सुरत बिखर के आ; मैं धूल में अटा हूँ मगर तुझको क्या हुआ; आईना देख जा ज़रा घर जा सँवर के आ; सोने का रथ फ़क़ीर के घर तक न आयेगा; कुछ माँगना है हमसे तो पैदल उतर के आ। |
आज फिर दिल ने कहा... आज फिर दिल ने कहा आओ भुला दे यादें; जिंदगी बीत गई और वही यादे-यादें; जिस तरह आज ही बिछड़े हो बिछड़ने वाले; जेसे एक उम्र के दुःख याद दिला दे यादें; काश मुमकिन हो कि इक कागजी कश्ती की तरह; खुद फरामोशी के दरिया में बहा दे यादें; वो भी रुत आये कि ए-जुद-फरामोश मेरे; फूल पते तेरी यादों में बिछा दे यादें; भूल जाना भी तो इक तरह की नेअमत है'फ़राज'; वरना इंसान को पागल न बना दे यादें। |
कल रोक नहीं पाए... कल रोक नहीं पाए जिसे तीरों-तबर भी; अब उसको थका देती है इक राहगुज़र भी; इस डर से कभी गौर से देखा नहीं तुझको; कहते हैं कि लग जाती है अपनों की नज़र भी; कुछ मेरी अना भी मुझे झुकने नहीं देती; कुछ इसकी इजाज़त नहीं देती है कमर भी; तुम सूखी हुई शाखों का अफ़सोस न करना; आँधी तो गिरा देती है मजबूत शजर भी; वो मुझसे वहाँ कीमते-जाँ पूछ रहा है; महफूज़ नहीं है जहाँ अल्लाह का घर भी। |
इश्क में जीत के आने... इश्क में जीत के आने के लिए काफी हूँ; मै अकेला ही जमाने के लिए काफी हूँ; मेरे हर हकीकत को मेरे ख्वाब समझने वाले; मै तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ; मेरे बच्चो, मुझे दिल खोल के तुम खर्च करो; मै अकेला ही कमाने के लिए काफी हूँ। |