ग़ज़ल Hindi Shayari

  • तेरी हर बात​...

    ​तेरी हर बात ​मोहब्बत में गवारा करके​;
    ​दिल के बाज़ार में बैठे है खसारा करके​;

    ​मुन्तजिर हूँ के सितारों की जरा आँख लगे​;
    ​चाँद को छत पर बुला लूँगा इशारा करके​;

    ​आसमानों की तरफ फैंक दिया है मैने​;
    ​चंद मिटटी के चरागों को सितारा करके​;

    ​मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी​;​​
    ​तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
    ~ Rahat Indori
  • अंदर का ज़हर चूम लिया​...

    ​अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आए गए;
    ​कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गये;

    ​सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ;
    सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गये;

    ​मस्जिद में कोइ दूर-दूर दूसरा ना था;
    ​हम आज अपने आप में मिल-जुल के आ गये;

    ​नींदों से जंग होती रहेगी तमाम उम्र;
    ​आँखों में बंद ख्वाब अगर खुल के आ गये;

    ​​सूरज ने अपनी शक्ल भी देखी थी पहली बार;
    ​आईने को मज़े भी तक़ाबुल के आ गये;

    ​​​अनजाने साए फिरने लगे है इधर-उधर;
    ​मौसम हमारे शहर में काबुल के आ गए।
    ~ Rahat Indori
  • राहे-दूरे-इश्क़ से​...
    ​​
    ​​ ​​ राहे-दूरे-इश्क़ से रोता है क्या​;​​
    ​​ आगे-आगे देखिए होता है क्या​​;

    ​​​​ सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं​;​
    ​​​ तुख़्मे-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या​​;

    ​​​​ क़ाफ़िले में सुबह के इक शोर है​;​​
    ​​ यानी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या​​;

    ​​​​ ग़ैरते-युसुफ़ है ये वक़्ते-अज़ीज़​;​
    ​​​ मीर इसको रायगाँ खोता है क्या​।
    ~ Mir Taqi Mir
  • क्या भला मुझ को​... ​

    ​ क्या भला मुझ को परखने का नतीज़ा निकला ;​​
    ​ ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला​;​​​

    ​ तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने​;​
    तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला​;​

    ​ जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने​;​
    बू​-​उड़ी धूप से, तसवीर से साया निकला​;​

    ​ तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर​;​​
    डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला​​।
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • राहे-दूरे-इश्क़...

    राहे-दूरे-इश्क़ से रोता है क्या;
    आगे-आगे देखिए होता है क्या;

    सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं;
    तुख़्मे-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या;

    क़ाफ़िले में सुबह के इक शोर है;
    यानी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या;

    ग़ैरते-युसुफ़ है ये वक़्ते-अज़ीज़;
    मीर इसको रायगाँ खोता है क्या।
    ~ Mir Taqi Mir
  • हस्ती अपनी​...

    हस्ती अपनी हुबाब की सी है​;​
    ये नुमाइश सराब की सी है​;​

    ​नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए​;​
    हर एक पंखुड़ी गुलाब की सी है​;

    चश्मे-दिल खोल इस भी आलम पर​​;​
    याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है​;​​

    ​​बार-बार उस के दर पे जाता हूँ​;​
    हालत अब इज्तेराब की सी ​है;​

    ​​ मैं जो बोला कहा के ये आवाज़​ ;​
    ​ उसी ख़ाना ख़राब की सी​;​
    ​​
    ​​ 'मीर' उन नीमबाज़ आँखों में​;
    ​ सारी मस्ती शराब की सी है।
    ~ Mir Taqi Mir
  • ​दुःख देकर सवाल...

    दुःख देकर सवाल करते हो;
    तुम भी जानम! कमाल करते हो;

    देख कर पूछ लिया हाल मेरा;
    चलो कुछ तो ख्याल करते हो;

    शहर-ए दिल में ये उदासियाँ कैसी;
    ये भी मुझसे सवाल करते हो;

    मरना चाहें तो मर नहीं सकते;
    तुम भी जीना मुहाल करते हो;

    अब किस-किस की मिसाल दूँ तुम को;
    हर सितम बे-मिसाल करते हो।
    ~ Mirza Ghalib
  • मुँह तका ही करे...

    मुँह तका ही करे है जिस-तिस का;
    हैरती है ये आईना किस का;

    शाम से कुछ बुझा सा रहता है;
    दिल हुआ है चराग़ मुफ़लिस का;

    फ़ैज़ अय अब्र चश्म-ए-तर से उठा;
    आज दामन वसीअ है इसका;

    ताब किसको जो हाल-ए-मीर सुने;
    हाल ही और कुछ है मजलिस का।
    ~ Mir Taqi Mir
  • तेरी ख़ुशी से अगर ​...
    ​​
    ​तेरी ख़ुशी से अगर गम में भी ख़ुशी न हुई;​​
    वो जिंदगी तो मोहब्बत की जिंदगी न हुई;​​
    ​​
    ​किसी की मस्त निगाही ने हाथ थाम लिया;​
    ​शरीके हाल जहाँ मेरी बेखुदी न हुई​;​
    ​​
    ख्याल-ए-यार सलामत तुझे खुदा रखे​;​
    ​तेरे बगैर कभी घर में रोशनी न हुई;​​
    ​ ​
    ​ इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी​;​
    ​ कि हमने आह तो की उनसे आह भी न हुई​;​
    ​​
    ​​ गए थे हम भी 'जिगर' जलवा गाहे-जानाँ में​;
    ​ वो पूछते ही रहे हम से बात भी न हुई।
    ~ Jigar Moradabadi
  • खुलता नहीं है हाल...

    खुलता नहीं है हाल किसी पर कहे बग़ैर;
    पर दिल की जान लेते हैं दिलबर कहे बग़ैर;

    मैं कैसे कहूँ तुम आओ कि दिल की कशिश से वो;
    आयेँगे दौड़े आप मेरे घर कहे बग़ैर;

    क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें;
    लब को तुम्हारे लब से मिलाकर कहे बग़ैर;

    बेदर्द तू सुने ना सुने लेक दर्द-ए-दिल;
    रहता नहीं है आशिक़-ए-मुज़तर कहे बग़ैर;

    तकदीर के सिवा नहीं मिलता कहीं से भी;
    दिलवाता ऐ "ज़फ़र" है मुक़द्दर कहे बग़ैर।
    ~ Bahadur Shah Zafar