तेरी हर बात... तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा करके; दिल के बाज़ार में बैठे है खसारा करके; मुन्तजिर हूँ के सितारों की जरा आँख लगे; चाँद को छत पर बुला लूँगा इशारा करके; आसमानों की तरफ फैंक दिया है मैने; चंद मिटटी के चरागों को सितारा करके; मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी; तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके। |
अंदर का ज़हर चूम लिया... अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आए गए; कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गये; सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ; सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गये; मस्जिद में कोइ दूर-दूर दूसरा ना था; हम आज अपने आप में मिल-जुल के आ गये; नींदों से जंग होती रहेगी तमाम उम्र; आँखों में बंद ख्वाब अगर खुल के आ गये; सूरज ने अपनी शक्ल भी देखी थी पहली बार; आईने को मज़े भी तक़ाबुल के आ गये; अनजाने साए फिरने लगे है इधर-उधर; मौसम हमारे शहर में काबुल के आ गए। |
राहे-दूरे-इश्क़ से... राहे-दूरे-इश्क़ से रोता है क्या; आगे-आगे देखिए होता है क्या; सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं; तुख़्मे-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या; क़ाफ़िले में सुबह के इक शोर है; यानी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या; ग़ैरते-युसुफ़ है ये वक़्ते-अज़ीज़; मीर इसको रायगाँ खोता है क्या। |
क्या भला मुझ को... क्या भला मुझ को परखने का नतीज़ा निकला ; ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला; तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने; तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला; जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने; बू-उड़ी धूप से, तसवीर से साया निकला; तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर; डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला। |
राहे-दूरे-इश्क़... राहे-दूरे-इश्क़ से रोता है क्या; आगे-आगे देखिए होता है क्या; सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं; तुख़्मे-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या; क़ाफ़िले में सुबह के इक शोर है; यानी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या; ग़ैरते-युसुफ़ है ये वक़्ते-अज़ीज़; मीर इसको रायगाँ खोता है क्या। |
हस्ती अपनी... हस्ती अपनी हुबाब की सी है; ये नुमाइश सराब की सी है; नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए; हर एक पंखुड़ी गुलाब की सी है; चश्मे-दिल खोल इस भी आलम पर; याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है; बार-बार उस के दर पे जाता हूँ; हालत अब इज्तेराब की सी है; मैं जो बोला कहा के ये आवाज़ ; उसी ख़ाना ख़राब की सी; 'मीर' उन नीमबाज़ आँखों में; सारी मस्ती शराब की सी है। |
दुःख देकर सवाल... दुःख देकर सवाल करते हो; तुम भी जानम! कमाल करते हो; देख कर पूछ लिया हाल मेरा; चलो कुछ तो ख्याल करते हो; शहर-ए दिल में ये उदासियाँ कैसी; ये भी मुझसे सवाल करते हो; मरना चाहें तो मर नहीं सकते; तुम भी जीना मुहाल करते हो; अब किस-किस की मिसाल दूँ तुम को; हर सितम बे-मिसाल करते हो। |
मुँह तका ही करे... मुँह तका ही करे है जिस-तिस का; हैरती है ये आईना किस का; शाम से कुछ बुझा सा रहता है; दिल हुआ है चराग़ मुफ़लिस का; फ़ैज़ अय अब्र चश्म-ए-तर से उठा; आज दामन वसीअ है इसका; ताब किसको जो हाल-ए-मीर सुने; हाल ही और कुछ है मजलिस का। |
तेरी ख़ुशी से अगर ... तेरी ख़ुशी से अगर गम में भी ख़ुशी न हुई; वो जिंदगी तो मोहब्बत की जिंदगी न हुई; किसी की मस्त निगाही ने हाथ थाम लिया; शरीके हाल जहाँ मेरी बेखुदी न हुई; ख्याल-ए-यार सलामत तुझे खुदा रखे; तेरे बगैर कभी घर में रोशनी न हुई; इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी; कि हमने आह तो की उनसे आह भी न हुई; गए थे हम भी 'जिगर' जलवा गाहे-जानाँ में; वो पूछते ही रहे हम से बात भी न हुई। |
खुलता नहीं है हाल... खुलता नहीं है हाल किसी पर कहे बग़ैर; पर दिल की जान लेते हैं दिलबर कहे बग़ैर; मैं कैसे कहूँ तुम आओ कि दिल की कशिश से वो; आयेँगे दौड़े आप मेरे घर कहे बग़ैर; क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें; लब को तुम्हारे लब से मिलाकर कहे बग़ैर; बेदर्द तू सुने ना सुने लेक दर्द-ए-दिल; रहता नहीं है आशिक़-ए-मुज़तर कहे बग़ैर; तकदीर के सिवा नहीं मिलता कहीं से भी; दिलवाता ऐ "ज़फ़र" है मुक़द्दर कहे बग़ैर। |