दिल में अब यूँ... दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते है; जैसे बिछड़े हुये काबे में सनम आते है; रक़्स-ए-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो; सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते है; और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो ; दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते है; इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन ; मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते है; कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग; वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते है। |
रची है रतजगो की... रची है रतजगो की चाँदनी जिन की जबीनों में; क़तील एक उम्र गुज़री है हमारी उन हसीनों में; वो जिनके आँचलों से ज़िन्दगी तख़लीक होती है; ढड़ाकता है हमारा दिल अभी तक उन हसीनों में; ज़माना पारसाई की हदों से हम को ले आया; मगर हम आज तक रुस्वा हैं अपने हमनशीनों में; तलाश उन को हमारी तो नहीं पूछ ज़रा उन से; वो क़ातिल जो लिये फिरते हैं ख़न्जर आस्तीनों में। |
ये चाँदनी भी जिन को... ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है; दुनिया उंहीं फूलों कोपैरों से मसलती है; शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा है; जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है; लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे; यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है; आ जाता है ख़ुद खेँच कर दिल सीने से पटरी पर; जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है; आँसू कभी पलकों पर ता देर नहीं रुकते; उड़ जाते हैं उए पंछी जब शाख़ लचकती है; ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये; बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है। |
ये चिराग़ बे नज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है; अभी तुझसे मिलता जुलता कोई दूसरा कहाँ है; वही शख़्स जिसपे अपने दिल-ओ-जाँ निसार कर दूँ; वो अगर ख़फ़ा नहीं है तो ज़रूर बदगुमाँ है; कभी पा के तुझको खोना कभी खो के तुझको पाना; ये जनम जनम का रिश्ता तेरे मेरे दरमियाँ है; मेरे साथ चलनेवाले तुझे क्या मिला सफ़र में; वही दुख भरी ज़मीं है वही ग़म का आस्माँ है; मैं इसी गुमाँ में बरसों बड़ा मुत्मइन रहा हूँ; तेरा जिस्म बेतग़ैय्युर है मेरा प्यार जाविदाँ है; उंहीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे; मुझे रोक रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है। |
मेरे क़ाबू में न... मेरे क़ाबू में न पेहरों दिल-ए-नाशाद आया; वो मेरा भूलने वाला जो मुझे याद आया; दिल-ए-वीराँ से रक़ीबों ने मुरादें पाईं; काम किस किस के मेरा ख़िर्मन-ए-बर्बाद आया; लीजिये सुनिये अब अफ़साना-ए-फ़ुर्क़त मुझ से; आप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया; दी मु'अज़्ज़िन ने अज़ाँ वस्ल की शब पिछले पहर; हाये कमबख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया; बज़्म में उन के सभी कुछ है मगर "दाग़" नहीं; मुझ को वो ख़ाना-ख़राब आज बहुत याद आया। |
तेरा ख़याल दिल से... तेरा ख़याल दिल से मिटाया नहीं अभी; बेदर्द मैं ने तुझ को भुलाया नहीं अभी; कल तूने मुस्कुरा के जलाया था ख़ुद जिसे; सीने का वो चराग़ बुझाया नहीं अभी; गदर्न को आज भी तेरे बाहों की याद है; चौखट से तेरी सर को उठाया नहीं अभी; बेहोश होके जल्द तुझे होश आ गया; मैं बदनसीब होश में आया नहीं अभी। |
तन्हा तन्हा हम... तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे; जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे; तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं; देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे; बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो; चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे; किन राहों से दूर है मंज़िल कौन सा रस्ता आसाँ है; हम जब थक कर रुक जायेंगे औरों को समझायेंगे; अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हो मुमकिन है; हम तो उस दिन रो देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे। |
मुहब्बत में करे क्या... मुहब्बत में करे क्या कुछ किसी से हो नहीं सकता; मेरा मरना भी तो मेरी ख़ुशि से हो नहीं सकता; न रोना है तरीक़े का न हँसना है सलीक़े का; परेशानी में कोई काम जी से हो नहीं सकता; ख़ुदा जब दोस्त है ऐ "दाग़" क्या दुश्मन से अंदेशा; हमारा कुछ किसी की दुश्मनी से हो नहीं सकता। |
थे कल जो अपने... थे कल जो अपने घर में वो मेहमाँ कहाँ हैं; जो खो गये हैं या रब वो औसाँ कहाँ हैं; आँखों में रोते रोते नम भी नहीं अब तो; थे मौजज़न जो पहले वो तूफ़ाँ कहाँ हैं; कुछ और ढब अब तो हमें लोग देखते हैं; पहले जो ऐ "ज़फ़र" थे वो इन्साँ कहाँ है। |
तुम ये कैसे... तुम ये कैसे जुदा हो गये; हर तरफ़ हर जगह हो गये; अपना चेहरा न बदला गया; आईने से ख़फ़ा हो गये; जाने वाले गये भी कहाँ; चाँद सूरज घटा हो गये; बेवफ़ा तो न वो थे न हम; यूँ हुआ बस जुदा हो गये; आदमी बनना आसाँ न था; शेख़ जी आप हो गये। |