ग़ज़ल Hindi Shayari

  • दिल में अब यूँ​...

    ​​ ​दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते है;
    ​ जैसे बिछड़े हुये काबे में सनम आते है​;

    ​​ रक़्स-ए-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो​;​
    सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते है​;​

    ​ और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो ​;​
    दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते है​;​

    ​ इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन ​;​
    मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते है​;​

    ​ कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग;
    ​ वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते है। ​
    ~ Faiz Ahmad Faiz
  • रची है रतजगो की...

    रची है रतजगो की चाँदनी जिन की जबीनों में;
    क़तील एक उम्र गुज़री है हमारी उन हसीनों में;

    वो जिनके आँचलों से ज़िन्दगी तख़लीक होती है;
    ढड़ाकता है हमारा दिल अभी तक उन हसीनों में;

    ज़माना पारसाई की हदों से हम को ले आया;
    मगर हम आज तक रुस्वा हैं अपने हमनशीनों में;

    तलाश उन को हमारी तो नहीं पूछ ज़रा उन से;
    वो क़ातिल जो लिये फिरते हैं ख़न्जर आस्तीनों में।
    ~ Qateel Shifai
  • ये चाँदनी भी जिन को...

    ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है;
    दुनिया उंहीं फूलों कोपैरों से मसलती है;

    शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा है;
    जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है;

    लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे;
    यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है;

    आ जाता है ख़ुद खेँच कर दिल सीने से पटरी पर;
    जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है;

    आँसू कभी पलकों पर ता देर नहीं रुकते;
    उड़ जाते हैं उए पंछी जब शाख़ लचकती है;

    ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये;
    बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है।
    ~ Bashir Badr
  • ये चिराग़ बे नज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है;
    अभी तुझसे मिलता जुलता कोई दूसरा कहाँ है;

    वही शख़्स जिसपे अपने दिल-ओ-जाँ निसार कर दूँ;
    वो अगर ख़फ़ा नहीं है तो ज़रूर बदगुमाँ है;

    कभी पा के तुझको खोना कभी खो के तुझको पाना;
    ये जनम जनम का रिश्ता तेरे मेरे दरमियाँ है;

    मेरे साथ चलनेवाले तुझे क्या मिला सफ़र में;
    वही दुख भरी ज़मीं है वही ग़म का आस्माँ है;

    मैं इसी गुमाँ में बरसों बड़ा मुत्मइन रहा हूँ;
    तेरा जिस्म बेतग़ैय्युर है मेरा प्यार जाविदाँ है;

    उंहीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे;
    मुझे रोक रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है।
    ~ Bashir Badr
  • मेरे क़ाबू में न...

    मेरे क़ाबू में न पेहरों दिल-ए-नाशाद आया;
    वो मेरा भूलने वाला जो मुझे याद आया;

    दिल-ए-वीराँ से रक़ीबों ने मुरादें पाईं;
    काम किस किस के मेरा ख़िर्मन-ए-बर्बाद आया;

    लीजिये सुनिये अब अफ़साना-ए-फ़ुर्क़त मुझ से;
    आप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया;

    दी मु'अज़्ज़िन ने अज़ाँ वस्ल की शब पिछले पहर;
    हाये कमबख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आया;

    बज़्म में उन के सभी कुछ है मगर "दाग़" नहीं;
    मुझ को वो ख़ाना-ख़राब आज बहुत याद आया।
    ~ Daagh Dehlvi
  • तेरा ख़याल दिल से...

    तेरा ख़याल दिल से मिटाया नहीं अभी;
    बेदर्द मैं ने तुझ को भुलाया नहीं अभी;

    कल तूने मुस्कुरा के जलाया था ख़ुद जिसे;
    सीने का वो चराग़ बुझाया नहीं अभी;

    गदर्न को आज भी तेरे बाहों की याद है;
    चौखट से तेरी सर को उठाया नहीं अभी;

    बेहोश होके जल्द तुझे होश आ गया;
    मैं बदनसीब होश में आया नहीं अभी।
    ~ Sahir Ludhianvi
  • तन्हा तन्हा हम...

    तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे;
    जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे;

    तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं;
    देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे;

    बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो;
    चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे;

    किन राहों से दूर है मंज़िल कौन सा रस्ता आसाँ है;
    हम जब थक कर रुक जायेंगे औरों को समझायेंगे;

    अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हो मुमकिन है;
    हम तो उस दिन रो देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे।
    ~ Nida Fazli
  • मुहब्बत में करे क्या...

    मुहब्बत में करे क्या कुछ किसी से हो नहीं सकता;
    मेरा मरना भी तो मेरी ख़ुशि से हो नहीं सकता;

    न रोना है तरीक़े का न हँसना है सलीक़े का;
    परेशानी में कोई काम जी से हो नहीं सकता;

    ख़ुदा जब दोस्त है ऐ "दाग़" क्या दुश्मन से अंदेशा;
    हमारा कुछ किसी की दुश्मनी से हो नहीं सकता।
    ~ Daagh Dehlvi
  • थे कल जो अपने...

    थे कल जो अपने घर में वो मेहमाँ कहाँ हैं;
    जो खो गये हैं या रब वो औसाँ कहाँ हैं;

    आँखों में रोते रोते नम भी नहीं अब तो;
    थे मौजज़न जो पहले वो तूफ़ाँ कहाँ हैं;

    कुछ और ढब अब तो हमें लोग देखते हैं;
    पहले जो ऐ "ज़फ़र" थे वो इन्साँ कहाँ है।
    ~ Bahadur Shah Zafar
  • तुम ये कैसे...

    तुम ये कैसे जुदा हो गये;
    हर तरफ़ हर जगह हो गये;

    अपना चेहरा न बदला गया;
    आईने से ख़फ़ा हो गये;

    जाने वाले गये भी कहाँ;
    चाँद सूरज घटा हो गये;

    बेवफ़ा तो न वो थे न हम;
    यूँ हुआ बस जुदा हो गये;

    आदमी बनना आसाँ न था;
    शेख़ जी आप हो गये।
    ~ Nida Fazli